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* विदेह-मुक्त सिद्ध-परमात्मा : स्वरूप, प्राप्ति, उपाय * १४३ *
आत्म-स्वभाव में प्रेरित करे तो वह अपने स्वाभाविक स्वभाव (सिद्ध-स्वरूप) को प्रगट कर सकता है, अपने में सोये हुए परमात्मभाव को जगा सकता है। अरिहंत
और सिद्ध-परमात्मा हमें अपने सुषुप्त परमात्मत्व को जगाने-प्राप्त कराने के लिए प्रेरक हैं-प्रकाशस्तम्भ हैं, आदर्श हैं। ___ अतः जिस ध्येय, आदर्श या परमात्म देव के निमित्त से चित्त और आत्मा की शुद्धि एवं आत्म-विकास होकर अन्त में वीतरागत्व या परमात्मत्व प्रगट होता है, उस महान उपकारी परमात्माओं के उपकारों के प्रति कृतज्ञ होकर उनका गुणगान, कीर्तन, स्तुति, भक्ति, आराधना-उपासना आदि करना व्यवहारनय की दृष्टि से अत्यावश्यक है।'
गुणों की उपलब्धि के लिए वन्दना या स्तुति इसी प्रकार वीतराग प्रभु को वन्दन, नमस्कार, गुणगान या स्तुति करने का उद्देश्य उनके प्रति समर्पितभाव से रहकर स्वभाव में रमणता का अभ्यास बढ़ाना है। समर्पकभावपूजक भक्त वन्दन भी इसी रूप में करता है-“कर्मरूपी पर्वतों का भेदनकर्ता, राग-द्वेष विजेता, विश्वतत्त्वों के ज्ञाता, परम तत्त्व के प्रकाशक एवं मोक्षमार्ग पर ले जाने वाले वीतराग देव को उनके जैसे गुणों की उपलब्धि के लिए मैं वन्दना करता हूँ।" : भावपूजक द्वारा वीतराग प्रभु का सान्निध्य या अवलम्बन लेने से साधक की आत्म-चेतना जग जाती है। वह प्रार्थना करता है-हे अरिहंत तथा मुक्त सिद्ध प्रभो ! मेरी भक्ति आपके सद्गुणों में बनी रहे, ताकि मैं किसी समय भी दुर्गुणों, विभावों या परभावों में न फँस जाऊँ। त्रिकाल-त्रिलोक में सांसारिक दुःख-चक्र से, भव-चक्र से बचाने वाला एकमात्र सिद्ध-मुक्त परमात्मा का ही अवलम्बन है।
१. मोक्षमार्गस्य नेतारं भत्तारं कर्मभूभृताम्।
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे ! तद्गुणलब्धये॥
-सर्वार्थसिद्धि मंगलाचरण
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