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* विशिष्ट अरिहन्त तीर्थंकर : स्वरूप, विशेषता, प्राप्ति-हेतु * ६३ *
(१७) तीर्थंकर केवली होते हुए भी केवली समुद्घात नहीं करते; जबकि सामान्य केवली केवली समुद्घात कर सकते हैं।
(१८) तीर्थंकर का जन्म वीरत्व वृत्ति वाले कुल में होता है; जबकि सामान्य केवली का जन्म सभी कुलों में हो सकता है।
(१९) तीर्थंकर के समचतुरस्र संस्थान ही होता है; जबकि सामान्य केवली के छह संस्थानों में से कोई भी संस्थान हो सकता है।
(२०) तीर्थंकरपद की प्राप्ति आगे बताये जाने वाले २० (या दिगम्बर परम्परा के अनुसार १६) कारणों में से किसी एक, दो या अधिक कारणों से हो सकती है; जबकि सामान्य अरिहन्त (केवली) पद की प्राप्ति के लिए ऐसा नियम नहीं है।
(२१) तीर्थंकर का आयुष्य जघन्य ७२ वर्ष का, उत्कृष्ट ८४ लाख पूर्व का होता है; जबकि सामान्य केवली का आयुष्य जघन्य ९ वर्ष का और उत्कृष्ट करोड़ पूर्व तक का होता है।
(२२) तीर्थंकर की अवगाहना जघन्य ७ हाथ, उत्कृष्ट ५00 धनुष्य की होती है; जबकि सामान्य केवली की अवगाहना जघन्य २ हाथ, उत्कृष्ट ५00 धनुष्य की होती है।
(२३) तीर्थंकर सिर्फ १५ कर्मभमिक क्षेत्रों में ही होते हैं; जबकि सामान्य केवली संहरण की अपेक्षा समग्र ढाई द्वीप में हो सकते हैं। . (२४) तीर्थंकर एक क्षेत्र में एक ही होते हैं; सामान्य केवली एक क्षेत्र में अनेक हो सकते हैं। . (२५) दो तीर्थंकर आपस में मिलते नहीं; जबकि सामान्य केवली मिलते हैं।
(२६) नरकंगति या देवगति से आयुष्य पूर्ण करके मनुष्यगति में आए हुए मनुष्य ही तीर्थंकर होते हैं; जबकि सामान्य केवली चारों गति से मनुष्यगति में जन्म लेकर केवली बन सकते हैं।
. (२७) तीर्थंकर जघन्य २० और उत्कृष्ट १७0 तक होते हैं; जबकि सामान्य केवली जघन्य २ करोड़ और उत्कृष्ट ९ करोड़ तक होते हैं।
(२८) तीर्थंकर कालचक्र के तीसरे या चौथे आरे में होते हैं; जबकि सामान्य केवली सामान्यतया चौथे आरे में तथा चौथे आरे में जन्मे हुए पाँचवें आरे में भी केवलज्ञानी हो सकते हैं। . (२९) तीर्थंकर स्वयं ही दीक्षा लेते हैं, किसी गुरु से नहीं; जबकि सामान्य केवली स्वयं या गुरु से भी दीक्षा ले सकते हैं।
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