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* ९२ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
भविष्य कथन, दूर समाचार प्रेषण विद्या प्रयोग, बौद्धिक प्रतिभा का अतिशय आदि के कारण कई रूपों में उस-उस युग में अमुक अंशों में उपलब्ध हो गया था। ऐसी स्थिति में पूर्वोक्त चार अतिशयों के आधार पर वास्तविक तीर्थंकर, जिन या अर्हत् की सहसा परीक्षा हो नहीं पाती थी। चमत्कारों और आडम्बरों के नीचे तीर्थंकरत्व या अर्हत्पद दब गया था। आम आदमी चमत्कारों से प्रभावित होकर किसी भी व्यक्ति को भगवान, पैगम्बर, तीर्थंकर या अवतार मानने लग जाता था। .. तीर्थंकरों की अलग पहचान के लिये बारह गुणों का प्रतिपादन ..
सामान्य केवली या सामान्य अरिहन्त के बारह गुण, जो 'अरिहन्त प्रकरण' में हम निरूपित कर आए हैं, वे अनन्त ज्ञानादि गण, निरवालिए आध्यात्मिक थे, तीर्थंकरों में ये ही १२ आध्यात्मिक गुण होते हैं, परन्तु इनसे तीर्थंकरों की अलग से कोई पहचान नहीं हो सकती थी। इसलिए तीर्थंकरों की सामान्य केवलियों से अलग पहचान के लिए निम्नोक्त १२ गुणों का प्रतिपादन किया गया-(१) अनन्त ज्ञान, (२) अनन्त दर्शन, (३) अनन्त चारित्र, (४) अनन्त तप, (५) अनन्त बलवीर्य, (६) अनन्त क्षायिक सम्यक्त्व, (७) वज्रऋषभनाराच संहनन, (८) समचतुरस्र संस्थान, (९) चौंतीस अतिशय, (१०) पैंतीन वाणी के अतिशय (गुण), (११) एक हजार आठ लक्षण, और (१२) चौंसठ इन्द्रों के पूज्य।' आप्त-परीक्षा में तीर्थकरत्व की परीक्षा के लिए आध्यात्मिक गुण ही उपादेय
इनमें से छह गुण तो आत्मिक विभूतियाँ हैं और शेष छह गुण भौतिक विभूतियाँ हैं। इसलिए फिर वही तीर्थंकर या अर्हत् की परीक्षा का प्रश्न उपस्थित हुआ। इसी कारण आचार्य समन्तभद्र ने 'आप्त-परीक्षा' (देवागम स्तोत्र) में तीर्थंकर-अर्हन्तों को चमत्कारों और भौतिक अतिशयों के गज से नापने से असहमति प्रगट की और उन्हें भौतिक चमत्कारों और अतिशयों के आवरण से उनकी यथार्थता की परीक्षा न करके विशुद्ध आध्यात्मिक गुणों के द्वारा उनकी यथार्थता, आप्तता और तीर्थंकरत्व की परीक्षा की। उनका प्रसिद्ध श्लोक है
"देवागम - नभोयान - चामरादि - विभूतयः। मायाविष्वपि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान्॥"
१. (क) 'जैनतत्त्वकलिका' से भाव ग्रहण, पृ. २८ (ख) देखें-'अरिहन्त : आवश्यकता, स्वरूप. प्रकार, अर्हता, प्राप्त्युपाय' श्मर्षक निबन्ध में
अंकित १२ गुण (ग) कई, अनन्त ज्ञानादि ४ और अष्ट महाप्रातिहार्य मिलकर ४ + ८ = १२ गुण तीर्थंकर के मानते हैं।
-सं.
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