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* विशिष्ट अरिहन्त तीर्थंकर : स्वरूप, विशेषता, प्राप्ति-हेतु * ७१ *
पुरुषसिंह-तीर्थंकर भगवान पुरुषों में सिंह के समान हैं। यहाँ सिंह से अभिप्राय उसकी क्रूरता, अज्ञानता और निर्दयता से नहीं, अपितु वीरता और पराक्रमशीलता से है। भगवान तीर्थंकर की तप-त्याग-सम्बन्धी वीरता, पराक्रमशीलता और आत्म-बलयुक्त निर्भयता की बराबरी कोई भी संसारी व्यक्ति नहीं कर सकता। सिंह का दूसरा गुण है-वह किसी के द्वारा लाठी से प्रहार किये जाने पर लाठी को नहीं पकड़ता, अपितु लाठी वाले व्यक्ति को पकड़ता है। इसी प्रकार वीतराग-तीर्थंकर भी सिंह के समान अपने शत्रु को शत्रु नहीं समझते, प्रत्युत शत्रु को शत्रु बनाने वाले को, शत्रु को पैदा करने वाले मन के विकारों को शत्रु समझते हैं। उनका आक्रमण व्यक्ति पर न होकर व्यक्ति के विकारों पर होता है, उसके विकारों को वे अपने दया, क्षमा आदि सद्गुणों के प्रभाव से शान्त करते हैं। शत्रु को मित्र बना लेते हैं।
पुरुषवर पुण्डरीक-तीर्थंकर भगवान पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल के समान होते हैं। पुण्डरीक · में मुख्य तीन गुण हैं-(१) श्वेतता (निर्मलता), (२) निर्लिप्तता, और (३) सुगन्ध । इसी प्रकार तीर्थंकर में भी पुण्डरीक कमल के तीनों गुण होते हैं। पुण्डरीक बिलकुल श्वेत होता है, निर्मल होता है, उस पर किसी भी दूसरे रंग की झाँई नहीं होती। उसी प्रकार तीर्थंकर का जीवन वीतरागभाव के कारण पूर्णत: श्वेत व निर्मल होता है, कषायों और विषयों का उन पर जरा भी रंग नहीं चढ़ता। पुण्डरीक कमल जल में रहता हुआ भी जल से ऊपर उठकर निर्लिप्त रहता है, उसी प्रकार भगवान संसार में रहते हुए भी संसार की विषय-वासनाओ. राग-रंगों, मोह-माया आदि से निर्लिप्त रहते हैं। पुण्डरीक कमल की सुगन्ध भी अत्यन्त मनमोहक होती है, इसी प्रकार भगवान के क्षमा, दया, समता. अहिंसादि गुणों की सुगन्ध या उनके आध्यात्मिक जीवन की सुगन्ध अपार होती है, वह हजारों वर्षों बाद भी भक्तजनों के हृदय को महकाती रहती है। · · 'पुरुषवर गन्धहस्ती-तीर्थंकर पुरुषों में गन्धहस्ती के समान हैं। गन्धहस्ती में दो गुण विशेष रूप से होते हैं-सुगन्ध और वीरता। उसके मद की गन्ध इतनी तीव्र होती है कि उसकी सुगन्धमात्र से दूसरे हजारों हाथी त्रस्त होकर भागने लगते हैं। साथ ही गन्धहस्ती इतना मंगलकारी होता है कि वह जिस प्रदेश में रहता है, वहाँ अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि के उपद्रव नहीं होते, सदा सुभिक्ष रहता है। भगवान भी मानव-जाति में गन्धहस्ती सम इतने प्रतापी और तेजस्वी हैं कि उनके समक्ष अत्याचार, वैर-विरोध, अज्ञान और पाखण्ड टिक नहीं सकता। सर्वत्र सत्य का १. (क) सयंसंबुद्धाणं. पुरिसुत्तमाणं. पुरिससिंहाणं. पुरिसवरपुंडरीयाणं ।'
-शक्रस्तव पाठ (ख) 'चिन्तन की मनोभूमि' से भाव ग्रहण, पृ. ३७-३९
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