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* १४ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
के हृदय - विकास की विधेयात्मक दिशा खुल जानी चाहिए, उसे ऐसी प्रतीति या उसकी सर्वभूतात्म भावभरी आत्म-निष्ठा ऐसी प्रबल हो जानी चाहिए कि आज मुझे क्रूर प्राणी के रूप में या क्रूर प्रकृति के रूप में नहीं, किन्तु मेरे आत्म-विकास या सर्वभूतात्मभूत भाव के विकास में सहायक परम मित्र का मिलाप या संयोग प्राप्त हुआ है। उसका शुद्ध प्रेमभरा (वात्सल्यपूर्ण ) हृदय मित्रभाव के अमृतरस से नाच उठना चाहिए।' इसीलिए यहाँ पद्य में सूचित किया गया है
"परममित्रनो जाणे पाम्या योग जो ।”
‘परम मित्र' शब्द का प्रयोग तो जान-बूझकर प्रयुक्त किया गया है। उसका फलितार्थ यह है कि भयंकर और जहरीले समझे जाने वाले सृष्टि के वे प्राणी. कल्याणमित्र के रूप में उसकी निर्भयता और क्षमा की साधना के उत्कर्ष में निमित्त बनने का जो पार्ट अदा कर सकते हैं, वह निकट के कहलाने वाले मानव-मित्रों. द्वारा अदा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वहाँ मित्रता का अमृतपान करते समय उस मित्रता की ओट में दूसरे अनेक प्रच्छन्न तीव्र घातक विष के प्याले निकल पड़ते हैं, जबकि वर्षों से दूर रहे इन वन्य मित्रों में तो ऊपर के विष का एक भी प्याला पच गया तो अन्दर से अमृत का अक्षय रसनिधान प्राप्त हो जाता है। जैसे कि स्वामी रामतीर्थ की हृदय-ध्वनि प्रस्फुटित हुई है
“In reality there is nothing to be feared of, all round in all future, in all distance there is oneself supreme existent and that is my ownself of whom I shall be afraid."?"
अर्थात् वास्तव में, मुझे किसी से कुछ भी करने की गुंजाइश ही नहीं। क्योंकि अखिल ब्रह्माण्ड में आज, भविष्य में, सभी अन्तरों में जब मेरा अपना जीवात्मा सर्वोपरि है और वह एकमात्र ममस्वरूप ही है (मेरा अपना ही रूप है), तब फिर मैं किससे डरूँगा ?
निष्कर्ष यह है कि निर्भयता की सिद्धि के लिए विशुद्ध प्रेम, मैत्री और वात्सल्य का दृढ़ अभ्यास होना चाहिए, उसके लिए एकाकी व एकान्त सेवन का अभ्यास ऐसा सुदृढ़ हो, ताकि पूर्वाध्यास निर्मूल हो जायें । श्मशान इसके लिए योग्य स्थल है, वह केवल मृतकों का ही विश्राम स्थल नहीं है, अपितु गोचर - अगोचर देहधारियों की, अनुसन्धान भूमि है, वैराग्य-स्थली है, इहजीवन और पुनर्जीवन का केन्द्र-बिन्दु है | श्मशान में अनुसंधानकर्त्ताओं को, शोधकर्त्ताओं को अनेक सत्य-तथ्य प्राप्त होते हैं । पर्वतीय प्रदेशों या वन्य प्रदेशों में सिंह, बाघ, सर्प आदि प्राणी भी
9. Man is charitable, he shall not harm, but help others.
इस सूक्ति में मनुष्य का वास्तविक उदारता धर्म बताया गया है।
२. 'Heart of Rama' से भाव ग्रहण
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