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पहला प्रकरण |
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हो जाता है, और लोग अपने-अपने स्वप्नों को देखते ही रहते हैं । अतएव हे राजन् ! अब तू अज्ञान रूपी निद्रा से जाग, और अपने ज्ञान स्वरूप को प्राप्त होकर सुख पूर्वक संसार में विचर ॥१०॥
प्रश्न- जब सारा जगत् रज्जु में सर्प की तरह कल्पित है, और मिथ्या है, तब फिर बन्ध और मोक्ष पुरुष को कैसे हो सकते हैं ?
मूलम् । मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धा बद्धाभिमान्यपि । किंवदन्तीय सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत् ॥ ११ ॥ पदच्छेदः ।
मुक्ताभिमानी, मुक्तः, हि बद्धः बद्धाभिमानी, अपि, किंवदन्ती, इह, सत्या, इयम्, या, गतिः, सा गति, भवेत् ॥
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
मुक्ताभिमानी = मुक्ति का अभिमान
मुक्त = मुक्त है
बद्धाभिमानी=बद्ध का अभिमानी
बद्ध =बद्ध है
हि = क्योंकि
इह = इस संसार में
इयमन्यह
किंवदन्ती-लोक-वाद
सत्या= सत्य है कि या=जैसी
मतिः =मति है। सा-वैसी ही गतिः गति
भवेत् होती है
भावार्थ ।
हे जनक ! बन्ध का कारण अभिमान है— ब्राह्मणोऽहम् क्षत्रियोऽहम् वैश्योऽहम् शूद्रोऽहम् ।