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भीतर बटन दबा देना कि यह पैसा हम काली चिंदी में बाँधकर समुद्र डाल रहे हैं!
वसूली करनेवाला अगर कर्ज़दार को गालियाँ दे, तो वे गालियाँ लेनदेन के व्यवहार में 'एकस्ट्रा आइटम' हैं । उसका हिसाब क्या है, वह 'ज्ञानीपुरुष' के अलावा क्या किसी और ने सोचा?
अपना भाव शुद्ध है तो कितना भी कर्ज़ा होगा, लेकिन वह चुक ही जाएगा, ऐसा कुदरत का नियम है । भाव में इतना ही होना चाहिए कि जल्दी से जल्दी उधार चुका दूँ!
२२. वसूली की परेशानी
इन 'ए. एम. पटेल' ने व्यापार में कैसा व्यवहार किया है? जहाँजहाँ लेना था वहाँ पर खुद ने ही वसूलना बंद कर दिया, ताकि फिर से कोई माँगने ही नहीं आए, और इस प्रकार इस व्यापार में से छूटे । अरे, उन्होंने तो इतनी हद कर दी कि पाँच सौ रुपये की वसूली करने जाते हुए, सामनेवाला कहने लगा कि 'मुझे ही आप से पाँच सौ रुपये लेने हैं । ' तब उन्होंने ‘चलो, हिसाब पूरा हुआ' कहकर चुपचाप चुका दिए !
२३. रुकावट डालने से पड़ते हैं अंतराय
कार्य की सफलता की इच्छा कौन नहीं रखता ? लेकिन उसका रहस्य क्या है? ज्ञानी कहते हैं, 'तेरा विल पावर होगा तो वह कार्य सफल होगा ही।' अपना भाव और दुआ दोनों ज़रूरी हैं । संपूर्ण निरीच्छक पद तक पहुँचे हुए की दुआ प्राप्त हो तो क्या से क्या प्राप्त हो जाए!
अंतराय कैसे पड़ते हैं? खुद के ही विचारों से डाली हुई रुकावटों से। वह छूटे किस तरह? उसके प्रतिस्पर्धी विचारों से - 'मुझसे पहाड़ नहीं चढ़ा जाएगा' अंदर ऐसा विचार आए, तो वहाँ पर चढ़ने में अंतराय पड़ेंगे ही और ‘क्यों नहीं चढ़ सकता?' कहा तो वहाँ पर अंतराय टूटेंगे ही। किसी को लाभ हो रहा हो, वहाँ पर रुकावट डालें तो हमें लाभ के अंतराय आएँगे ही।
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