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भोगवटा, लक्ष्मी का (१३)
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तब पता चला कि वहाँ पर रुपयों का झंझट नहीं होता। आपको कितना घी, कितना तेल, कितनी सब्जी, कितना वेजिटेबल घी, कितना शुद्ध घी, कितना दूध, इन सबका हिसाब आपके साथ जोइन्ट हो चुका है। उसी कारण ये सभी चीजें मिलती हैं, वर्ना ये तो किसी को मिलती ही नहीं, धनवानों को भी नहीं मिलतीं।
निंदा बंद होने से, लक्ष्मी छलके अपना यह देश पैसेवाला कब बनेगा? कब लक्ष्मीवान और सुखी होगा? जब निंदा और तिरस्कार बंद हो जाएँगे तब। ये दोनों बंद हुए कि देश में बेहिसाब पैसे और लक्ष्मी होंगे।
प्रश्नकर्ता : निंदा और तिरस्कार कब बंद होंगे?
दादाश्री : जब लोभ बढ़े तब निंदा और तिरस्कार, दोनों बंद हो जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : लोभ बढ़े तो कपट बढ़ता है न?
दादाश्री : हाँ, लेकिन लोगों का तिरस्कार और निंदा करना तो बंद हो जाएगा न! लोभी मनुष्य को कभी समय होता ही नहीं और लोभी तो अपनी ही मस्ती में रहता है, इसलिए फिर उसे लक्ष्मी के अंतराय नहीं पडते। लक्ष्मी के अंतराय तो किसे होते हैं? कि जिसे यह सब होता है न कि 'मगनलाल ऐसे हैं, फलाने भाई ऐसे हैं।' जहाँ ऐसी निंदा है, वहाँ पर लक्ष्मी नहीं है। 'यह नीची जाति का है, यह ऊँची जाति का है, यह ऐसा है, यह वैसा है।' लोभी को ऐसा कोई झंझट रहता ही नहीं। कोई गँवार भी अगर उसका ग्राहक हो न तो उसे भी कहेगा कि, 'आओ भाई, बैठो सेठ, यहाँ गद्दी पर बैठो न!' ।
प्रश्नकर्ता : तो फिर लोभी को ऐसा कोई अंतराय बाधक नहीं है?