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पसंद, प्राकृत गुणों की (१४)
काम पड़े तो बाप कह सकते हैं, लेकिन क्या गधे को बाप कहना चाहिए? लेकिन इन लोगों को ऐसी आदत पड़ गई है कि गर्ज़ इतनी मीठी लगती है कि उसकी मिठास के लिए कुछ भी करने से चूकते नहीं हैं। गर्ज़ कैसी लगती है? चीनी से भी मीठी लगती है!
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पागल को गाँव दे दें तो आए हल....
अपने यहाँ एक कहावत है न कि डाह्या ने डाम अने गांडा ने गाम, (अक़्लमंद को सज़ा और पागल को गाँव) लेकिन वह सही बात है। क्योंकि पागल के साथ जो बंधे हैं, वे छूट नहीं पाते। उसे तो पूरी जायदाद देकर भी छूट जाना अच्छा, वर्ना पागल तो काट खाएँगे। यानी वे तो जो भी माँगे न, वह देकर केस बंद कर देना चाहिए। मैं पूरी जिंदगी यही सिस्टम सीखा था, और समझदार को तो समझाया जा सकता है कि, 'भाई, तेरा तो बाद में होता रहेगा, लेकिन यह छोड़कर उसके साथ बात का निपटारा ला दे न!'
प्रश्नकर्ता : तो अक़्लमंद तो पुण्य बाँधता है और पागल पाप बाँधता है, ऐसा हुआ न?
दादाश्री : अरे, फिर भी निरे पाप ही बांध रहा है। वह खुद पागलपन करके लोगों से जायदाद छीन लेता है, फिर भी पाप से लेता है और पाप बाँधकर लेता है और अक़्लमंद तो खुद की जायदाद देकर पुण्य बाँधता है। यानी अब पागल को तो, जहाँ समझदारी की कमी है, वहाँ क्या हो सकता है ? इसीलिए यह कहावत बनी न? और पहले से ही ऐसा है । इसलिए लोग भी कहते हैं न, पागल है, इसे जो चाहिए, वह दे दो न! जो पागल है उससे तो जैसे-तैसे करके छूट जाना चाहिए या नहीं? नहीं तो वही कहेगा कि, 'मेरे बाग में किसलिए आए हो?' और मारेगा फिर! यानी एकाध पागल यदि आपको मिल जाए न, तो