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आप्तवाणी -
दादाश्री : हाँ, ऐसी ही निकलती है ! हम कोन्ट्रेक्टर हैं न, इसलिए ये टेन्डर वगैरह के बारे में सब जानते हैं।
ऊपरी कैसे पुसाए ?
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प्रश्नकर्ता जितना इस बॉस के सामने झुकते हैं, उतना यदि भगवान के सामने झुकें, तब तो कल्याण हो जाए ।
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दादाश्री : हाँ, कल्याण हो जाए । उतना यदि भगवान को नमस्कार करें, तब भी निबेड़ा आ जाए। क्योंकि भगवान के घर पर कमी नहीं है। लोगों को बॉस के सामने झुकना पसंद नहीं है। लेकिन एक तरफ संसार चलाना पड़ता है और वह अनिवार्य है न! वह क्या करे? इसलिए बॉस के सामने झुककर, काम करके, दो उल्टे-सुल्टे बोल सहन करकर चलाना पड़ता है। बॉस घर से चिढ़कर आया हो, तो वह आप पर चिढ़ता रहेगा ।
इसलिए मुझे तेरहवें वर्ष में विचार आया था कि सिर पर ऊपरी होगा तो वह कैसे पुसाएगा ? मुझे वह विचार उस समय बहुत खटकता था। ऊपरी हमें बिना कारण के डाँटते-डपटते रहते हैं! न्यायसंगत डाँटे, तो समझें कि ठीक है, लेकिन यह तो खुद चिढ़ा हुआ होता है, तो अपने ऊपर भी चिढ़ता है, इसलिए मुझे बॉस पसंद नहीं थे। इसलिए मैंने नक्की किया था कि भगवान को ही ढूँढ निकालना है। यह बॉस तो कैसे रास आए?
प्रश्नकर्ता :
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सिर्फ इन मनुष्यों को ही ठेठ तक बेगार करना पड़ता है वर्ना ये गाय-बैल जब बूढ़े हो जाते हैं, तब उन्हें पशुशाला में रख आते हैं। सिर्फ इन मनुष्यों को ही ठेठ तक हाय-हाय, हायहाय, और भागदौड़ करनी पड़ती है।
तो नौकरी छोड़ देना अच्छा है न?
दादाश्री : नहीं। नौकरी करना भी अच्छा नहीं है और छोड़ देना भी अच्छा नहीं है । छोड़ दोगे तो घर में सब के मन में