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जेब कटी? वहाँ समाधान! (१७)
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मैं क्या कहना चाहता हूँ कि इस दुनिया का क्रम कैसा है? कि आपको १९९५ में जो कमीज़ मिलनेवाले हैं, उनका यदि आप आज अधिक उपयोग कर लोगे तो १९९५ में बगैर कमीज़ के रह जाओगे, मैं ऐसा कहना चाहता हूँ। इसलिए आप उन्हें इस तरह से खर्च करो। और किसी चीज़ को ऐसे ही बिना घिसे निकाल मत देना और किसी चीज़ को निकाल दो तो किसी न किसी जगह पर घिसी हुई होनी चाहिए तब फिर निकाल देना। ऐसा मेरा नियम है। इसलिए मैं कहता हूँ कि अभी तक इतना नहीं घिसा है तो क्या इस चीज़ को निकाल दोगे? नहीं, क्योंकि यह इतना ही खराब हुआ है, अभी तो चलेगा, उसे अगर मन चाहे तब निकाल दोगे तो वह मीनिंगलेस हुआ न! यानी ये सभी चीजें जो आप काम में लेते हो, उनका हिसाब होता होगा या नहीं? उनका हिसाब है और वह कितना हिसाब है? कि एक परमाणु का भी हिसाब है। बोलो, वहाँ गोलमाल किस तरह चलेगा? 'व्यवस्थित' के ऐसे नियम हैं, परमाणु के हिसाब हैं। इसलिए किसी चीज़ का बिगाड़ मत करना।
जगत् में पोल चलेगी ही नहीं हमें यह पानी का बिगाड़ करना पड़ता है। मैं 'ज्ञानीपुरुष' हूँ, इसलिए मुझे तो, 'ज्ञानीपुरुष' को त्यागात्याग संभव नहीं है, फिर भी मुझे पानी का बिगाड़ करना पड़ता है। हमें इस पैर में तकलीफ हुई है, इसलिए डबल्यु सी में बैठना पड़ता है फिर पानी के लिए जंजीर खींचते हैं, तो कितना, दो डब्बे पानी जाता होगा? और पानी की कमी है, पानी क़ीमती है इसलिए? नहीं, लेकिन इस तरह से पानी के कितने ही जीव टकरा-टकराकर बिना बात के मारे जाते हैं! और जहाँ एक-दो डब्बों से काम चल जाए ऐसा है, वहाँ इतने सारे पानी का बिगाड़ क्यों करें? जबकि हम तो 'ज्ञानीपुरुष' हैं, इसलिए ऐसी भूल होते ही हम तो तुरंत दवाई (प्रतिक्रमण) डाल देते हैं। उससे कितने ही महीनों तक हमारा काम