________________
व्यापार की अड़चनें (१९)
३०५
होगा, दुकानदार को होगा या सेठ को होगा। आप तो पार्टनर नहीं हो न, तो भाग्यशाली भी नहीं होना है और अभागा भी नहीं होना है, नॉर्मल! और यदि कभी यह ज्ञान नहीं मिला होता तो मन में ऐसा लगता कि अभी तक मुझे इस जगत् में फ़तह जैसा कुछ लगता ही नहीं है, तो फिर सभी के साथ रेसकोर्स में खड़े रहना पड़ता। थोड़ा भी नहीं दौड़ सके और रेसकोर्स में खड़ा रहना पड़े, तो क्या दशा होगी अपनी? और वापस सभी दौड़नेवाले घोड़ों की उपाधि भी हमें ही करनी पड़ेगी।
यानी आपको समझ में आया न? कि यह जगत् एक्जेक्ट नहीं है। बारह गुणा बारह एक सौ चवालीस नहीं है, गप्प गुणा गप्प एक सौ चवालीस है। बारह गुणा बारह एक सौ चवालीस होता तो भगवान का सिद्धांत कहलाता, लेकिन यह जगत् ऐसा नहीं है। मुझे व्यापार में नुकसान हो जाए तो मैं कह देता था कि बीस हज़ार रुपये अनानत के नाम जमा कर दो। फिर अनानत के नाम की पूँजी का हिसाब निकालते। अब वह पूँजी रखें कहाँ, वह तो भगवान जाने! वास्तव में तो वह पूँजी है ही कहाँ? फिर भी यदि वैसी पूँजी हो और कभी हम संभालकर रखें और कोई ले जाए तो? यानी कि कब कोई ले जाएगा उसका भी कोई ठिकाना नहीं है, किसके हाथ में क्या स्पर्श होगा उसका भी ठिकाना नहीं है। मेरी बात तुझे समझ में आती है न?
लक्ष्मी, स्पर्श के नियमाधीन यह पूरा जगत् स्पर्श के नियम के आधार पर चलता है। ये स्पंदन हैं न, वे स्पर्श के नियमों के आधार पर चलते हैं। अभी ये ठंडी पवन आए न, फिर भी अंदर से स्पर्श ऐसा महसूस होता है जैसे कि यहाँ जल गए हों, ऐसा लगता है। इस रुपये का स्पर्श होता है, मीठे का स्पर्श होता है, कड़वे का स्पर्श होता है, क्या उस तरह के स्पर्श नहीं होते? यानी जिसका स्पर्श होना होगा, वह होगा। इन सिर के बालों के लिए तू चिंता नहीं करता