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व्यापार की अड़चनें (१९)
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प्रश्नकर्ता : होता है।
दादाश्री : उस घड़ी क्या सभी को मिलकर रोने बैठना चाहिए? पूरे दिन कढ़ापा-अजंपा, न जाने कहाँ जाना है! किसलिए करते हैं? जैसे हज़ार-दो हज़ार साल की आयु का एक्स्टेन्शन करवाकर नहीं लाया हो? वहाँ एक्स्टेन्शन कर देते हैं न?
प्रश्नकर्ता : कोई नहीं करके देता।
दादाश्री : तो फिर किसलिए? क्यों? हाँ, व्यापार करना चाहिए। व्यापार करें, लेकिन तरीके से और गुज़ारे जितना ही। गुज़ारा यानी आराम से खाकर, आधा घंटा आराम करके फिर काम पर जाना चाहिए। ऐसे ही भागदौड़, भागदौड़, भागदौड़ करने की क्या ज़रूरत है? जैसे दो हज़ार साल की आयु अधिक लिखवाकर नहीं लाया हो? और आत्मा के लिए भी करना चाहिए न? आत्मा के लिए तो पहले करना चाहिए। आपने पिछले जन्म में आत्मा के लिए किया था इसलिए अभी यह सुख और शांति है, नहीं तो मज़दूरी कर-करके मर जाते। पिछले जन्म में आत्मा का किया था, उसका यह फल है और अब वापस नये सिरे से करोगे, तो बाद में उसका फल मिलेगा।
समता का एडजस्टमेन्ट, 'अनामत पूँजी' प्रश्नकर्ता : कुछ लक्ष्य पकड़े नहीं रखते जबकि कुछ चीजें तो, हम सोचें कि बेचने पर पाँच रुपये फायदा मिलेगा तो वहीं पर नुकसान होता है, तो फिर वहीं पर ध्यान रहा करता है।
दादाश्री : उस नुकसान को तो हमें वहीं के वहीं जमा कर देना कि नुकसान के खाते में जमा। फिर बही में जमा-उधार कर दिया तो बही बराबर हो गई। ऐसा है, कि पहले के सभी अभिप्राय बन गए हैं कि 'ऐसे फायदा मिलेगा, वैसे फायदा मिलेगा'
और वहीं पर नुकसान हो जाता है। इसलिए आपको 'व्यवस्थित' है ऐसा कहना पड़ेगा। अभी और भी कोई नुकसान होनेवाला होगा