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व्यापार की अड़चनें (१९)
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दादाश्री : उसका नियम होना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : नौकरीवाले के लिए तो नियम होते हैं, लेकिन व्यापारवालों के तो, जैसे नियम हैं ही नहीं।
दादाश्री : व्यापारवाला ऐसा नियम बनाए, तो रात को दो बजे भी उसे दुकान खुली रखने के लिए कौन मना करता है? कोई स्टेशन से अचानक आ जाए, तो दो सिगरेट के पैकेट ले जाएगा न! इसके लिए कौन मना करता है? घनचक्कर का कहीं अंत आएगा क्या? अरे, दो सिगरेट के पैकेट के लिए क्या पूरी रात गुज़ारेगा?
जहाँ सभी लोग आठ बजे दुकान खोलते हों, वहाँ हम साढ़े छह बजे खोलकर बैठ जाएँ तो उसका कोई अर्थ नहीं है। सारी मेहनत निरर्थक है और आठ बजे बाद खोलना भी गुनाह है। दोपहर को सब बंद करें उस समय पर बंद कर देनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : सभी कारखानेवाले तीन-तीन शिफ्ट तो चलाते हैं, तो देखा-देखी दूसरा भी कहता है कि, 'क्यों न मैं भी तीन शिफ्ट चलाऊँ?'
दादाश्री : हाँ, लेकिन तब तो तीन नहीं, पाँच करके देखो
न!
ऐसा है, इस नेचर ने भी अपने शरीर की हर एक चीज़ देखकर व्यवस्था की है। ये दो कान उनमें से एक अचानक बंद हो गया तो क्या होगा? लेकिन गाड़ी चलती रहेगी न? दो आँखें, उनमें से एक बंद हो गई तो क्या होगा? ऐसी कितनी ही चीजें दो-दो रखी हैं न? उसी तरह बहुत हो गया तो दो शिफ्ट चला सकते हैं। वर्ना उसका अंत ही नहीं आएगा न! ।
प्रश्नकर्ता : जितना हो सके उतना इस जंजाल को नॉर्मल रखना चाहिए।