Book Title: Aptavani Shreni 07
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 343
________________ ३०२ आप्तवाणी-७ दादाश्री : ऐसा है न, खाते-पीते समय चित्त कारखाने में नहीं जाए तो कारखाना ठीक है, लेकिन खाते-पीते समय चित्त कारखाने में चला जाए तो उस कारखाने का क्या करना है? हमें हार्ट फेल का व्यापार करवाता है वह कारखाना, वह अपने काम का नहीं है। अतः नॉर्मेलिटी को समझना चाहिए। अब तीन शिफ्ट चलवाए, तो उसमें यह नवविवाहित है, उसे पत्नी से मिलने का समय नहीं मिलेगा तो क्या होगा? क्या वे तीन शिफ्ट ठीक है? विवाह करके नई-नई पत्नी को लाया हो, तो पत्नी के मन का समाधान तो होना चहिए न? घर जाए, तो पत्नी कहेगी कि, 'आप तो मुझसे मिलते ही नहीं, बातचीत भी नहीं करते!' तो यह व्याजबी नहीं कहलाएगा न? जगत् में व्याजबी दिखे वैसा होना चाहिए। घर में फादर के साथ या दूसरे किसी के साथ व्यापार को लेकर में मतभेद नहीं पड़े, उसके लिए आपको भी कहना चाहिए, हाँ जी हाँ, कि 'चलती है तो चलने दो।' लेकिन आप सभी को साथ में मिलकर नक्की करना चाहिए कि पंद्रह लाख इकट्ठे कर लिए, अब हमें अधिक नहीं चाहिए। घर के सभी मेम्बरों की पार्लियामेन्ट बुलाकर नक्की करना चाहिए। प्रश्नकर्ता : उसके लिए कोई 'एग्री' नहीं होगा, दादा। दादाश्री : तो फिर वह काम का नहीं है। सभी को नक्की करना चाहिए। 'हम चार शिफ्ट चलाएँगे,' दौ सो वर्ष के आयुष्य का एक्स्टेन्शन करवा देगा वो? । प्रश्नकर्ता : वह हो ही नहीं सकता न! दादाश्री : तो यह सब ध्यान में रहना चाहिए और कमाने के बाद फिर नुकसान नहीं होनेवाला हो तो कमाया हुआ काम का। यह तो फिर से नुकसान होगा। फिर से जोखिमदारी तो खड़ी ही रही! नुकसान होता है या नहीं होता?

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