Book Title: Aptavani Shreni 07
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 349
________________ ३०८ आप्तवाणी-७ दादाश्री : लेकिन गलत करते ही क्यों हो? वह सीखे ही कहाँ से? कोई अच्छा सिखा रहा हो वहाँ से अच्छा सीखकर आओ। यह गलत करने का किसी से सीखे हो, इसलिए तो गलत करना आता है। नहीं तो गलत करना आएगा ही कैसे? अब गलत सीखना बंद कर दो और अब गलत काम के सभी कागज़ जला डालो। प्रश्नकर्ता : लेकिन फिर व्यापार नहीं चलेगा, व्यापार ऐसा है कि गलत तो करना ही पड़ता है। दादाश्री : व्यापार नहीं चलेगा तो आपको क्या नुकसान है? प्रश्नकर्ता : व्यापार नहीं चलेगा तो पैसा नहीं मिलेगा और हमें दुनिया में रहना है। दादाश्री : आप ऐसा कैसे जानते हो कि गलत नहीं करोगे तो व्यापार नहीं चलेगा? उसका सारा फोरकास्ट है क्या आपके पास? बगैर फोरकास्ट के किस तरह आप कह सकते हो कि आपका नहीं चलेगा? यानी थोडे दिनों के लिए यह जो गलत कर रहे हो, उससे उल्टा तो करो। करके तो देखो, तो पता चलेगा कि व्यापार पर क्या असर होता है! कोई ग्राहक आए और वह पूछे, 'इसकी क्या क़ीमत है?' तब कहो, 'ढाई रुपये।' फिर वह कहेगा कि, 'साहब, इसकी सही क़ीमत कितनी है?' तब आप सही कहना कि, 'बज़ार में यह लेने जाओ तो इसकी सही क़ीमत पौने दो रुपये हैं।' ऐसा आप एक बार कहकर तो देखो, फिर क्या होता है वह देखो। प्रश्नकर्ता : तो फिर अपने पास से कोई माल लेगा ही नहीं। दादाश्री : वह लेगा या नहीं लेगा, आपको उसका कैसा पता चला? आपको फोरकास्ट हुआ था? जैसे भविष्य का सबकुछ दिख रहा हो, ऐसा करते हैं न लोग? वह नहीं लेगा तो दूसरा

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