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व्यापार की अड़चनें (१९)
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मेहनत बच जाती है।' यानी मुझे छूट दे दी थी कि आप अपना धर्म करते रहो और मैं यह करता रहूँगा। साथ-साथ उन्होंने कहा था कि मुझे भी बदले में थोड़ा-बहुत 'यह' दीजिएगा।
नुकसान बता देना, उधार तो रुके! वर्ना, अगर व्यापार में नुकसान जाता हो तो लोगों से कह देता था और फायदा होता था तो वह भी कह देता था! लेकिन यदि लोग पूछे तभी, नहीं तो मेरे व्यापार की बात ही नहीं करूँ। लोग पूछे, कि 'आपको अभी नुकसान हुआ है, क्या यह बात सही है?' तब मैं कह देता था कि, 'यह बात सही है।' कभी हमारे पार्टनर ने हमसे ऐसा नहीं कहा कि आप क्यों कह देते हो? क्योंकि ऐसा कहना तो अच्छा है कि लोग पैसा लगाने के लिए आ रहे हों तो रुक जाएंगे और उधार बढ़ना कम हो जाएगा, नहीं तो लोग क्या कहेंगे? 'अरे! नहीं कहना चाहिए, वर्ना लोग पैसा नहीं लगाएँगे।' लेकिन इससे तो अपना उधार बढ़ जाएगा न, इसके बजाय जो हुआ हो वह साफ-साफ कह दो न कि 'भाई नुकसान हुआ है।'
दोनों को जवाब अलग-अलग हमारी कंपनी में नुकसान हुआ तो ज़रा ठंडा पड़ गया था। तो जब बड़ौदा जाते तब लोग पूछते कि, 'बहुत नुकसान हुआ है?' तब मैंने कहा कि, 'कितना लगता है आपको?' तब कहते कि, 'लाख रुपये का नुकसान हुआ लगता है।' तब मैं कहता कि, 'तीन लाख का नुकसान हुआ है।' अब व्यापार में आधे या पौने लाख का नुकसान हुआ होता था, लेकिन मैं उसे तीन लाख कहता था। क्योंकि वह यही ढूँढने आया था! वह क्या ढूँढने आया है वह मैं जानता था, कि इसे यदि मैं लाख का कहूँगा तो खुश रहेगा और बेचारे को घर पर भोजन करना अच्छा लगेगा। इसलिए मैं कहता कि 'तीन लाख का नुकसान