Book Title: Aptavani Shreni 07
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 332
________________ व्यापार की अड़चनें (१९) जाओगे। एक गाँव में एक सुनार रहता है । पाँच हज़ार लोगों का गाँव है। आपके पास सोना है, वह सारा सोना लेकर वहाँ बेचने गए। तब वह सुनार सोना ऐसे घिसता है, देखता है। अब हमारा सोना वैसे तो चाँदी जैसा दिख रहा होता है, मिलावटवाला सोना होता है, फिर भी वह सुनार डाँटता नहीं है । वह क्यों नहीं डाँटता कि 'ऐसा क्यों बिगाड़कर लाए हो?' क्योंकि उसकी दृष्टि सोने पर ही है। और दूसरे के पास जाओ, तो वह डाँटता है कि 'ऐसा कैसा लाए हो?' इसलिए जो सुनार है, वह डाँटता नहीं है। इसलिए आप यदि सोना ही माँग रहे हो, तो इसमें सोना ही देखो न! उसमें और कुछ क्यों देखते हो? इतना मिलावटवाला सोना क्यों लाए हो? ऐसे डाँटे - करे तो, उसका कब पार आएगा? हमें अपनी तरह से देख लेना है कि इसमें इतना सोना है और उसके इतने रुपये मिलेंगे। आपको समझ में आया न? उस दृष्टि से मैं सारे जगत् को निर्दोष देखता हूँ। इसी दृष्टि से, भले ही कैसा भी सोना हो, फिर भी सुनार सोना ही देखता है न? बाकी कुछ देखता ही नहीं है न और डाँटता भी नहीं है। हम उसे बताने जाएँ, तब अपने मन में होता है कि वह डाँटेगा तो? अपना सोना तो सारा खराब हो गया है! लेकिन नहीं, वह डाँटता-करता नहीं है। उसे कुछ हर्ज भी नहीं। वह क्या कहेगा, 'मुझे दूसरा क्या लेना-देना?' वे बेअक़्ल हैं या अक़्लवाले हैं? प्रश्नकर्ता : अक़्लवाला ही कहलाएगा न ? दादाश्री : यह सिमिलि ठीक नहीं है? २९१ प्रश्नकर्ता : ठीक है । ऐसा उदाहरण दें, तो सबकुछ जल्दी फिट हो जाता है। दादाश्री : अब यह उदाहरण कोई जानता नहीं क्या? प्रश्नकर्ता : जानते होंगे। दादाश्री : ना, किस तरह ख्याल में आए? पूरे दिन ध्यान

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