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आप्तवाणी-७
दादाश्री : हाँ, सबकुछ 'व्यवस्थित' के ताबे में है। यानी भीतर 'व्यवस्थित' जैसी प्रेरणा देता है न, हमें उस तरीके से करना चाहिए। दूसरा उसमें अधिक अक्लमंदी का उपयोग नहीं करना चाहिए। बुद्धि से नापने जाएँ कि फायदा मिलेगा या नुकसान तो उसे नाप सकेंगे क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : एक व्यक्ति को कोई बीमारी हुई हो और उस बीमारी को बुद्धि से नापने जाएँ तो क्या होगा? उसे ऐसा ही लगेगा कि अब मर ही जाऊँगा, और यदि किसी को बीमारी नहीं हुई हो और उसे बुद्धि से नापे नहीं फिर भी वह बेचारा यों ही हिचकी खाकर मर जाता है। ऐसा होता है या नहीं होता?
यानी यह सब नुकसान या फायदा नहीं देखना है। अब देखना क्या है? यह फायदा और नुकसान वगैरह तो सब करके ही आए हो, अब इसमें भाव डालो या ऐसा कुछ करो। इस फायदे और नुकसान में तो सिर्फ निमित्त की तरह, भीतर से जिस अनुसार प्रेरणा आती है उस अनुसार हमें चलते जाना है। 'व्यवस्थित' का उल्लंघन मत करना। जैसी भीतर प्रेरणा हो उसी अनुसार करना। नुकसान के लिए भी 'व्यवस्थित' प्रेरणा देता है और फायदे के लिए भी प्रेरणा 'व्यवस्थित' ही देता है, इसलिए हमें प्रेरणा के अनुसार ही चलना चाहिए। क्योंकि फायदा और नुकसान वह सब 'व्यवस्थित' के ताबे में है, तो फिर अब करें क्या? फुरसत का समय इसमें मत बिगाड़ना, इस सत्संग में टाइम लगाओ। क्योंकि वह सब आपके हाथ की सत्ता ही नहीं है। ये व्यापारी लोग रात को कमाते होंगे या नहीं कमाते होंगे? रात को सो जाने पर भी वे कमाते हैं?
प्रश्नकर्ता : कमाई और नुकसान तो चलता ही रहता है