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क्रोध की निर्बलता के सामने (१८)
२८१ का इफेक्ट है, उतना इफेक्ट देकर फिर बंद हो जाएगा।
यह ज़रा सूक्ष्म बात है और सूक्ष्म है इसलिए लोगों के ध्यान में नहीं आया। हर एक चीज़ का उपाय तो होता ही है न! जगत् बगैर उपाय के तो होता ही नहीं न! जगत् तो परिणाम का ही नाश करना चाहता है।
अतः क्रोध-माना-माया-लोभ का उपाय यह है। परिणाम को कुछ भी मत करो, उसके कॉज़ेज़ को खत्म करो तो ये सभी चले जाएँगे। यानी वह खुद विचारक होना चाहिए। वर्ना अगर अजागृत होगा तो किस प्रकार उपाय करेगा?
प्रश्नकर्ता : कॉज़ेज़ किस तरह खत्म करें, वह ज़रा फिर से समझाइए न!
दादाश्री : इस भाई पर मुझे क्रोध आ रहा हो, तो फिर मैं नक्की करूँगा कि इस पर जो क्रोध आ रहा है वह, मैंने पहले जो उसके दोष देखे हैं, उसका परिणाम है। अब यह जोजो दोष कर रहा है उन्हें मन पर नहीं लूँगा तो फिर उसके प्रति क्रोध बंद होता जाएगा, लेकिन कुछ पूर्व परिणाम होंगे उतने आ जाएँगे, लेकिन आगे के दूसरे सब बंद हो जाएँगे।
प्रश्नकर्ता : दूसरे के दोष दिख जाते हैं, क्या उस वजह से क्रोध आता है?
दादाश्री : हाँ। वे दोष देखते हैं, उन्हें भी हमें जान लेना है कि ये भी गलत परिणाम हैं। अर्थात् जब ये गलत परिणाम देखना बंद हो जाएगा, उसके बाद क्रोध बंद हो जाएगा। हमारा दोष देखना बंद हो गया तो फिर सबकुछ बंद हो गया।
क्रोध, मात्र निर्बलता ही! प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, कभी कोई व्यक्ति अपने सामने गरम हो जाए, तब क्या करना चाहिए?