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क्रोध की निर्बलता के सामने (१८)
है, लेकिन इन्हें शर्म नहीं आती है न, उतना अच्छा है ! वर्ना अबला कहने पर तो शरमा जाएँगे न? लेकिन इन्हें कुछ भान ही नहीं है । भान कितना है? नहाने का पानी रखो तो नहा लेता है । खाने का, नहाने का, सोने का वगैरह सब भान है, लेकिन और कुछ भान नहीं है, मनुष्यपन का जो विशेष भान कहा जाता है कि ये सज्जन पुरुष हैं, वैसी सज्जनता लोगों को दिखे, उसका भान नहीं है।
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प्रश्नकर्ता : सज्जनता भी संसार में ज़रूरी है न?
दादाश्री : सबसे पहली ज़रूरत है। संसार में सज्जनता की ही क़ीमत है और सज्जनता होगी तब मनुष्य में वापस आएगा और अगर सज्जनता खत्म हो गई और इन्सानियत चली गई कि वापस चार पैरवाला हो जाएगा । सर्व प्रथम इन्सानियत तो होनी ही चाहिए। इन्सानियत है, बस इतना ही टेस्ट हो जाए, तभी यहाँ पर मनुष्य योनि में जन्म होगा। अतः सज्जनता तो सब से पहले चाहिए ।
प्रश्नकर्ता : वह भान ज्ञानी के बिना नहीं मिलता है न!
दादाश्री : ऐसा है, पहले ज्ञानी नहीं मिले हों लेकिन फिर भी संत मिले होंगे न, उस जन्म में भी उनमें विनयगुण यानी कि सज्जनता तो आ चुकी होती है। भले ही उनमें निर्बलता हो, लेकिन सज्जनता तो आ सकती है। मैंने ऐसे अच्छे-अच्छे लोग देखे हैं, क्योंकि पहले संत, गुरु मिले थे कि जिनके आधार पर सज्जनता रख सकते हैं। लेकिन मोक्ष का रास्ता तो तभी होगा जब 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ।
क्रोध का शमन, किस समझ से ?
कुछ लोग क्रोध को दबाते हैं । अरे, दबाने जैसी चीज़ नहीं है वह ! क्रोध को पहचानकर दबा न! क्रोध दबाएगा तो, उसमें चार भैंसे हैं : क्रोध-मान- माया - लोभ ! उसमें क्रोध के भैंसे को