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आप्तवाणी-७
दादाश्री : गरम तो हो ही जाएँगे न! उनके हाथ में थोड़े ही हैं? अंदर की मशीनरी हाथ में नहीं है न! यह तो जैसेतैसे करके मशीनरी चलती रहती है। यदि खुद के हाथ में होता तो कोई मशीनरी गरम होने ही नहीं देता न! इस दुनिया में कोई गरम नहीं होता। यह गरम होना यानी, थोड़ा भी गरम हो जाना यानी गधा बन जाना। मनुष्यपन में गधा बन गया! ऐसा कोई करेगा ही नहीं न! लेकिन जो खुद के हाथ में नहीं है, वहाँ फिर क्या हो?
ऐसा है, इस जगत् में कभी भी गरम होने का कोई कारण ही नहीं है। कोई कहेगा कि, 'यह बच्चा ऐसे कुँए में गिर जाए ऐसा लग रहा था।' ऐसे कुँए में गिर जाए तब भी वह गरम होने का कारण नहीं है। वहाँ तुझे ठंडे रहकर काम लेना है। यह तो, तू गरम है इसलिए गरम हो जाता है। और गरम हो जाना, वह निर्बल स्वभाव है। भयंकर निर्बलता कहलाती है। यानी जब बहुत अधिक निर्बलता होगी, तभी गरम होगा न! यानी जो गरम होता है उस पर तो दया रखनी चाहिए कि इस बेचारे के कंट्रोल में कुछ भी नहीं है। जिसका खुद का स्वभाव ही उसके कंट्रोल में नहीं है, उस पर दया रखनी चाहिए। गरम होना यानी क्या? कि पहले खुद जलना और फिर सामनेवाले को जला देना। यह दियासलाई लगाना यानी खुद भभककर जलना और फिर सामनेवाले को जला देना। यानी गरम होना खुद के हाथ में होता तो कोई गरम होता ही नहीं न! सभी को गरमी होती भी नहीं है न! जलन किसे पसंद है? यदि कोई ऐसा कहे कि, 'कितनी ही बार संसार में क्रोध करने की ज़रूरत पड़ती है।' तब मैं कहूँगा कि, 'नहीं, कोई ऐसा कारण नहीं है कि जहाँ पर क्रोध करने की ज़रूरत हो।' क्रोध, वह निर्बलता है इसलिए वह हो जाता है। भगवान ने इसलिए अबला कहा है। पुरुष तो किसे कहते हैं? क्रोध-मान-माया-लोभ की निर्बलता जिसमें न हो, उसे भगवान ने पुरुष कहा है। यानी ये जो पुरुष दिखते हैं उन्हें भी अबला कहा