________________
क्रोध की निर्बलता के सामने (१८)
२७९
नहीं। क्रोध हो जाता है इसका मतलब जानते ही नहीं, सिर्फ अहंकार करते हो कि मैं जानता हूँ।
प्रश्नकर्ता : क्रोध हो जाने के बाद ध्यान आता है कि हमें क्रोध नहीं करना चाहिए।
दादाश्री : नहीं, लेकिन जानने के बाद क्रोध नहीं होगा। हमने यहाँ पर दो शीशियाँ रखी हों, वहाँ पर किसी ने समझाया हो कि यह दवाई है और दूसरी शीशी में पोइज़न है। दोनों एक सी दिखती हैं लेकिन उसमें भूलचूक हो जाए तो समझ में आएगा न कि यह जानता ही नहीं? भूलचूक नहीं हो तभी कह सकते हैं कि यह जानता है, लेकिन भूलचूक हो जाती है, तो यह बात पक्की हो गई कि वह जानता ही नहीं था। उसी प्रकार जब क्रोध हो जाता है, तब कुछ भी जानते नहीं हो और यों ही जानने का अहंकार लेकर घूमते रहते हो। उजाले में ठोकरें लगेंगी क्या? यानी जब तक ठोकरें लगती हैं, तब तक कुछ जाना ही नहीं। यह तो अंधेरे को ही उजाला कहते हैं, वह अपनी भूल है। इसलिए सत्संग में बैठकर 'जानो' एक बार, फिर क्रोध-मान-माया-लोभ सभी कुछ चला जाएगा।
परिणाम तो, कॉज़ेज़ बदलने से ही बदलेंगे
एक भाई ने मुझसे कहा कि, 'अनंत जन्मों से इस क्रोध को निकाल रहे हैं, फिर भी यह क्रोध जाता क्यों नहीं?' तब मैंने कहा कि, 'आप क्रोध निकालने के उपाय नहीं जानते हो।' तब उसने कहा कि, 'क्रोध निकालने के तो जो उपाय शास्त्र में लिखे हैं, वे सभी करते हैं, फिर भी क्रोध नहीं जाता।' तब मैंने कहा कि, 'सम्यक उपाय होना चाहिए।' तब कहा कि, 'बहुत सम्यक उपाय पढ़े हैं, लेकिन उनमें से कुछ भी काम में नहीं आया।' फिर मैंने कहा कि, 'क्रोध को बंद करने का उपाय ढूँढना मूर्खता है, क्योंकि क्रोध तो परिणाम है। जैसे कि आपने परीक्षा दी और
मैंने कहा कि, ", "क्रोध निकालने के तो जो जाता तब मैंने