Book Title: Aptavani Shreni 07
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 318
________________ क्रोध की निर्बलता के सामने (१८) २७७ प्रश्नकर्ता : पाँच साल का । दादाश्री : तो पचहत्तर पिछले जन्म के और पाँच इस जन्म के, तो बोलो अब अस्सी साल का हुआ न? प्रश्नकर्ता : ये दूसरी योनि में मान-अपमान फिर से भूल जाता होगा? दादाश्री : भूल जाता है सबकुछ । यहाँ से गया तभी से भूल जाता है, याद नहीं रहता । चार दिन पहले क्या हुआ था, वह आपको याद है? प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन फिर बैर, मान-अपमान, वह सब याद रहता है तो यह अच्छा-अच्छा कैसे भूल जाता है? दादाश्री : नहीं, वह बैर भी याद नहीं रहता। सिर्फ क्रोधमान-माया-लोभ ही संज्ञा के रूप में रहते हैं। ये चार संज्ञाएँ हमेशा रहती हैं, बाकी बैर तो फिर बाद में होता है। लेकिन ये चार क्रोध-मान-माया-लोभ पहले से ही होते हैं। आते ही उसका अपमान हो कि शोर मचाने लगता है। अब, ये बच्चों के खाने की गोलियाँ होती हैं न ! वह पिपरमिंट यहाँ पर हो और इस बेबी और इस बच्चे को लेनी हो तो जो लोभी होगा वह अधिक ले लेगा। हमें पता भी चलता है कि यह लोभी है। लोभी हर चीज़ में आगे ही रहता है। प्रश्नकर्ता : पशुयोनि में भी क्रोध - मान - माया-लोभ होते हैं न ? दादाश्री : सब जगह होते हैं, लेकिन वे संज्ञा के रूप में होते हैं इसलिए हर्ज नहीं । वे क्रोध - मान-माया - लोभ नहीं माने जाते, उसका कर्म नहीं बंधता । प्रश्नकर्ता : ये क्रोध - मान - माया - लोभ की प्रकृति जन्म से ही जीव में होती है ?

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