Book Title: Aptavani Shreni 07
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 315
________________ २७४ आप्तवाणी-७ नॉर्मल इज़ द फीवर, अबव नॉर्मल इज़ द फीवर, नाइन्टी एट इज़ द नॉर्मल। अतः हमें नॉर्मेलिटी ही चाहिए। प्रश्नकर्ता : तो फिर कोई मेरा अपमान करे और मैं शांति से बैठा रहूँ तो वह निर्बलता नहीं कहलाएगी? दादाश्री : नहीं। ओहोहो! अपमान सहन करना, वह तो बहुत बड़ा बल कहलाता है! अभी हमें कोई गालियाँ दें तो हमें कुछ भी नहीं होगा, उसके लिए मन भी नहीं बिगड़ेगा, वही है बल! और निर्बलता तो ये सब किच-किच करते ही रहते हैं न, जीव मात्र लड़ते ही रहते हैं। वह सारी निर्बलता कहलाती हैं। यानी कि शांति से अपमान सहन करना, वह बहुत बड़ा बल कहलाता है। और ऐसा अपमान एक ही बार लाँघ जाएँ, एक स्टेप लाँघ जाएँ न, तो सौ स्टेप लाँघने की शक्ति आ जाएगी। आपको समझ में आया न? सामनेवाला यदि बलवान हो, तो जीवमात्र उसके सामने निर्बल हो ही जाता है। वह तो उसका स्वाभाविक गुण है। लेकिन यदि निर्बल मनुष्य आपको छेड़े तब भी आप उसे कुछ भी नहीं करो, तब वह बहुत बड़ा बल कहलाएगा। 'ज्ञानीपुरुष' के पास तो इतनी सारी सिद्धियाँ होती हैं कि एक ही विधि करके सामनेवाले को आश्चर्यचकित कर डालें, लेकिन ऐसा नहीं करते। सिद्धि का तो वे उपयोग ही नहीं करते न! प्रश्नकर्ता : लेकिन एक बार सिद्धि का उपयोग करके देखिए न! दादाश्री : ऐसे कहीं उपयोग करते होंगे? और ऐसे लोगों के सामने कहाँ उपयोग करें? वास्तव में तो निर्बल का रक्षण करना चाहिए और बलवान का सामना करना चाहिए, लेकिन इस कलियुग में ऐसे लोग रहे ही नहीं न! अभी तो निर्बल को ही मारते रहते हैं और बलवान से तो भागते हैं। बहुत कम लोग हैं कि जो निर्बल की रक्षा

Loading...

Page Navigation
1 ... 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350