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आप्तवाणी-७
दादाश्री : क्रोध करोगे, तो भी वह मारे बगैर नहीं रहेगा। अरे, आपको भी मारेगा न! फिर भी उस पर क्रोध किसलिए करते हो? उसे धीरे से कहो, व्यवहारिक बातचीत करो। वर्ना, सामने क्रोध करोगे तो वह वीकनेस है।
प्रश्नकर्ता : तो उसे बच्चे को मारने दें?
दादाश्री : नहीं, वहाँ पर आपको जाकर कहना चाहिए कि, 'भाई, आप ऐसा क्यों कर रहे हो? इस बालक ने आपका क्या बिगाड़ा है? उसे इस तरह समझाकर बात करनी चाहिए।' आप उस पर क्रोध करोगे तब तो वह क्रोध आपकी कमज़ोरी है। प्रथम तो खुद में कमज़ोरी नहीं होनी चाहिए। जिसमें कमज़ोरी नहीं होती उसका प्रभाव पड़ता है न! वह तो अगर यों ही, साधारण रूप से भी कहे न, तो भी सब मान जाएँगे।
प्रश्नकर्ता : शायद न मानें।
दादाश्री : नहीं मानने का क्या कारण है? आपका प्रभाव नहीं पड़ता। घर में छोटे बच्चों से पूछे कि, 'तेरे घर में पहला नंबर किसका?' तब बेटा ढूँढ निकालता है कि मेरी मम्मी नहीं चिढ़ती, इसलिए सबसे अच्छी वह है। पहला नंबर उनका। फिर दूसरा, तीसरा, ऐसे करते-करते पापा का नंबर अंत में आता है! किसलिए? क्योंकि वे चिड़चिड़े हैं इसलिए। मैं कहूँ कि, 'पापा पैसे लाकर खर्च करते हैं फिर भी उनका आख़िरी नंबर?' तब वे कहते हैं, हाँ। बोलो अब, मेहनत-मजदूरी करते हो, खिलाते हो, पैसे लाकर देते हो, फिर भी आख़िरी नंबर आपका ही आता है न?
यानी कमज़ोरी नहीं होनी चाहिए, चारित्रवान होना चाहिए। मेन ऑफ पर्सनालिटी होना चाहिए! लाखों गुंडे उसे देखते ही भाग जाएँ! इन चिड़चिड़े लोगों से तो कोई नहीं भागता, बल्कि मारते हैं! जगत् तो कमज़ोरी को ही मारेगा न!