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क्रोध की निर्बलता के सामने (१८)
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प्रश्नकर्ता : लेकिन मुझे यह पूछना था कि अन्याय पर चिढ़ चढ़े, वह तो अच्छा है न? किसी भी चीज़ के लिए हम खुले तौर पर अन्याय होता हुआ देखें तब जो प्रकोप होता है, क्या वह योग्य है?
दादाश्री : अब वह अच्छा कब कहलाएगा कि फॉरिन में एक्स्पोर्ट हो, तब अच्छा कहलाएगा। वह एक्स्पोर्ट होता है क्या?
प्रश्नकर्ता : हाँ, वह एक्स्पोर्ट हो सकता है।
दादाश्री : लेकिन सामने लेनेवाले ग्राहक हैं क्या? उसका कोई ग्राहक मिलेगा नहीं न! ऐसा है कि ये सब क्रोध और चिढ़ वगैरह ये सभी कमज़ोरियाँ हैं, सिर्फ वीकनेस हैं। पूरे जगत् के पास यह वीकनेस है, फिर आपका उत्पादन कौन लेगा? यहाँ से रोज़ चिढ़ एक्स्पोर्ट करो, तो कोई नहीं लेगा। वे कहेंगे, 'बल्कि हम ही आपको भेज देंगे! और भेजने का सब चार्ज भी हमारा।' ऊपर से ऐसा कहेंगे!
प्रश्नकर्ता : सात्विक चिढ़ या फिर सात्विक क्रोध, अच्छा है या नहीं?
दादाश्री : उसे लोग क्या कहेंगे? ये बच्चे भी उसे क्या कहेंगे कि, 'ये तो चिड़चिड़े ही हैं!' चिढ़ तो मूर्खता है, फूलिशनेस है! चिढ़ को कमज़ोरी कहते हैं। बच्चों से हम पूछे कि, 'तेरे पापा जी कैसे हैं?' तब वे भी कहेंगे कि, 'वे तो बहुत चिड़चिड़े हैं!' बोलो, अब इज़्ज़त बढ़ी या घटी? यह वीकनेस नहीं होनी चाहिए। अतः जहाँ सात्विकता होगी, वहाँ वीकनेस नहीं होगी।
प्रश्नकर्ता : कोई व्यक्ति छोटे बच्चे को बहुत ही मार रहा हो और उस समय हम वहाँ से गुज़र रहे हों, तब उस व्यक्ति को रोकें और नहीं माने तो अंत में डाँटकर क्रोध करके उसे एक तरफ हटा देना चाहिए या नहीं?