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आप्तवाणी-७
चलता रहता है। लेकिन फिर भी दवाई तो हमें भी डालनी पड़ती है। क्योंकि वहाँ ऐसा नहीं चलेगा, 'ज्ञानीपुरुष' हों या कोई भी हों, लेकिन कुछ नहीं चलेगा। यह अंधेर नगरी नहीं है। यह तो वीतरागों का राज है, चौबीस तीर्थंकरों का राज है! आपको पसंद आई यह तीर्थंकरों की ऐसी बात?