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बॉस- नौकर का व्यवहार (१६)
खटकता रहेगा और नौकरी करोगे तो आपको झंझट रहेगा। इसके बजाय जो चल रहा है, वैसे ही चलने दो न गाड़ी! अपने आप छूट जाएगी, तब ठीक है !
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अपने जोड़ नरम हो जाएँ, तब बच्चे भी डाँटते-डपटते हैं इसमें कहाँ सुख आया? ये सब बैराग की बातें हैं । लेकिन हमने ऐसा देखा है। तभी हमें लगता है कि यह तो वास्तव में बंधन है! हमें तो यह सब बचपन से ही बंधन लगने लगा था, ऊपरी पसंद नहीं थे। हमें ऊपरी बिल्कुल भी पसंद नहीं थे, वह तो बहुत बड़ा त्रास लगता था । मास्टर साहब को तो मजबूरन चला लेना पड़ता था। मास्टर साहब के पास पढ़ने जाना पड़ता था न, वह तो मजबूरन चला लेता था। क्योंकि घर से फुटबॉल को मारते थे कि जाओ स्कूल में और स्कूल में मास्टर साहब फुटबॉल को मारते थे कि घर पर जाओ, तो फुटबॉल जैसी दशा होती थी। तो फिर ऊपरी अच्छे लगते होंगे? अभी पूरे वर्ल्ड में हमारा कोई ऊपरी नहीं है। ऊपरी कैसे पुसाए? और आपको भी ऊपरी रहित बना देता हूँ, इसके बावजूद मुझे किसी का ऊपरी नहीं बनना है।
अन्डरहैन्ड को 'डिसमिस' मत करना
प्रश्नकर्ता: दादा, मेरी नौकरी पुलिस विभाग में है, हमारे विभाग में करप्शन बहुत चलता है । फिर मुझे भी करना पड़ता है।
दादाश्री : जो करप्शनवाले हैं, वे लोग तो सड़े हुए बीज डाल रहे हैं। वे जब उगते हैं, तब पत्ते भी सड़े हुए होते हैं ! ऐसा आपने देखा है ? पत्तों में छेद होते हैं? देखो, आश्चर्य है न ! ईमानदार को अभी इन लोगों की तरफ से परेशानी है । थोड़ा सा भी ईमानदार कोई आया तो उसे जीने ही नहीं देते, जैसे कि 'अरे यह भूत कहाँ से आ गया?" ऊपरी अधिकारी भी ऐसा समझते हैं कि यह दख़ल आई। सभी ओर ईमानदार को परेशानी है, लेकिन