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जेब कटी? वहाँ समाधान! (१७)
२६१ हैं कि, 'दादा, मैं यह धंधा करता हूँ।' मैं कहता हूँ कि, 'ठीक है भाई, लेकिन शगुन वगैरह सब देखकर निकलना, क्योंकि जोखिम बहुत है।'
प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि ऐसे बहुत सारे लोग तैयार हो जाएँ और यही धंधा करने लगें तो सोसायटी की क्या दशा होगी?
दादाश्री : ऐसा है, कि यह धंधा ये लोग नहीं करते हैं। ये जो नालायक लोग पैसा इकट्ठा करते हैं, वह गलत पैसा है। उस गलत पैसे के लिए ये जीव उत्पन्न होते हैं। नहीं तो इन नालायकों का धन कौन, ये भगवान खुद लेने आएँगे? यानी यह जो सारी गलत लक्ष्मी है, उसी के कारण ये जीव बढ़ते हैं। जब लक्ष्मी अच्छी हो जाएगी, तब ये जीव कम हो जाएँगे। जैसे ये एक प्रकार के जीव हैं, वैसे ही वकील भी जीव हैं, डॉक्टर भी जीव हैं। लेकिन इन डॉक्टरों और वकीलवाले जीव के बजाय टी.बी. के जीवजंतु अच्छे। ये सभी प्रकार के जीवजंतु ही हैं, लेकिन कौन-से जीव संसार के काम के हैं? किसान काम के हैं कि वे अनाज उगाकर देते हैं, गाय-भैंसें रखते हैं। वे जीव काम के हैं क्योंकि वे घी, दूध, सब सप्लाई करते हैं। अतः जो जानवरों को पालते हैं, किसान हैं वगैरह, वे सभी काम के हैं और वैद्य भी काम के हैं, लोगों के दर्द मिटाते हैं, ये कुछ डॉक्टर भी काम के हैं, लेकिन बाकी डॉक्टरों में से जो कुछ जीव (लोगों को अहित करनेवाले) उत्पन्न हो गए हैं। कुछ वकील भी ऐसे हो गए हैं जैसे निरे जीवाणु (लोगों को अहित करनेवाले जीव) ही उत्पन्न हो गए हैं। क्योंकि इस काल में झगड़े बढ़े हैं, इसलिए वकील बढ़ गए, और जब वकील बढ़ जाएँ तो झगड़े बढ़ते ही हैं। वे तो, जहाँ पर न हों, वहाँ भी झगड़े खड़े करवाते हैं।
प्रश्नकर्ता : यानी जब भी कभी कोई रोग होता है, उसके सामने जीवाणु खड़े हो ही जाते हैं? ।