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आप्तवाणी-७
हिसाब बँधेगा नहीं तो इन लोगों के साथ तो लड़ना ही मत। यदि तू अमेरिकन के साथ लड़ेगा तो तुझे वापस वहाँ जाना पड़ेगा। 'मेरी' के साथ शादी करनी पड़ेगी लेकिन जब 'मेरी' डायवोर्स ले लेगी तब तेरी क्या दशा होगी? यानी ऐसा है यह सब! इन कर्मों की गतियाँ समझ में नहीं आतीं।
हम कठोर बात बोलते हैं। ज्ञानी के शब्द कठोर किसलिए होते हैं? क्योंकि वे निर्भीकता से बोलते हैं और पूरा जगत् डर के मारे बोलता है। ऊपर 'बाप' है, उसका डर लगता है। कर्म बंधेगे उसका डर लगता है। जबकि 'ज्ञानीपुरुष' को तो किसी प्रकार का डर ही नहीं है। जिन्हें कर्म बँधते हैं, उन्हें डर है। ज्ञानी तो वर्ल्ड को फेक्ट चीज़ कह देते हैं, जो फेक्ट है वह वर्ल्ड के किसी भी व्यक्ति को कह देते हैं। क्योंकि जिसे कुछ चाहिए नहीं, फिर उसे क्या? जिसे कुछ चाहिए उसे तो लालच के लिए डरना पड़ता है। 'ज्ञानी' को तो वर्ल्ड की कोई चीज़ नहीं चाहिए, उन्हें कहीं डर लगता होगा? वे तो वर्ल्ड के मालिक
हैं!
ओहोहो! ज्ञानी की करुणा! यह जगत् तो बहुत कठिन है, भगवान महावीर को भी परेशान कर दे ऐसा है।
प्रश्नकर्ता : मुझे ऐसा अनुभव कहाँ नहीं हुआ?
दादाश्री : आपको जो अनुभव हुए हैं वे अलग प्रकार के हुए हैं और भगवान को जो अनुभव हुए वे अलग प्रकार के हुए। भगवान तो सर्वसत्ताधारी होने के बावजूद भी, उन्हें कोई चारा नहीं न! जहाँ परसत्ता है वहाँ स्वसत्ता नहीं चल सकती और जहाँ स्वसत्ता है, वहाँ पर परसत्ता कुछ भी नहीं कर सकती। आप में तो अभी स्वसत्ता और परसत्ता अलग नहीं हुए हैं, इसलिए तब तक आपका केस इसमें नहीं माना जाएगा न?