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पसंद, प्राकृत गुणों की (१४)
प्रश्नकर्ता : कम या अधिक शक्ति के अनुसार ही अंतराय आते हैं न?
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दादाश्री : हाँ, शक्ति अधिक हो तो अधिक अंतराय आते हैं। इस दुनिया में सरल के लिए बहुत अच्छा है, सरल को कुछ भी स्पर्श नहीं करता। हम तो मूलत: पहले से ही सरल स्वभाव के हैं न, इसलिए हमें कुछ भी स्पर्श नहीं करता। हम सरल हैं, लेकिन समझ-बूझकर सरल हैं । 'वांक - सरलता' (अनजाने में सरलता) तो बहुत जीवों में है। हमें समझ में आ गया कि इन भाई का बिल्कुल करेक्ट है, तो हम बिल्कुल सरल, दूसरा कुछ भी नहीं और ये भाई टेढ़े चलें तब भी हम जाने देते हैं लेकिन वह समझ - बूझकर जाने देते हैं। हम करुणा रखते हैं, वह करुणा भी समझबूझकर रखते हैं। हम जानते हैं कि यह टेढ़ापन कर रहा है, क्योंकि इसकी शक्ति अधिक नहीं है, इसलिए टेढ़ा चल रहा है यह! लेकिन वह करुणा भी समझ-बूझकर रखते हैं।
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एक बार जो ‘ज्ञानीपुरुष' के पास आने के बाद यदि उसमें कहीं पर अहंकार से पागलपन खड़ा हो जाए, तब तो वह मारा ही जाएगा न? नहीं तो यहाँ आना ही मत। वीतराग रहना, दूर रहना। यदि दूरवाले बोलें तो उन्हें बहुत जोखिम नहीं है, लेकिन यहाँ पर आने के बाद अगर उल्टा बोलेगा तो उसे पागल अहंकार कहेंगे। वह पागल अहंकार उसे खुद को बहुत मार खिलाता है, फिर भी हम उसे बचाते रहते हैं ! एक सरीखा ही (भाव) रखते हैं, करुणा ही रखते हैं उस पर !
पराये बाज़ार में गुनहगार कौन?
एक व्यक्ति मुझसे पूछ रहा था कि, 'दादा, आप में दूसरी न कहने योग्य कोई चीज़ है क्या?' मैंने कहा, 'नहीं, नहीं, यहाँ बिल्कुल भी गोलमाल नहीं है, एक इतनी सी भी गोलमाल नहीं चलती। दिन-रात मेरे साथ रहे, निरंतर रहे, फिर भी मेरी इतनी सी