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दुःख मिटाने के साधन (१५)
अतः इस दुनिया में जो कुछ भी मिलता है वह सब, जो दिया था वही वापस आ रहा है ऐसा समझ में आए तो पहेली हल हो जाएगी या नहीं होगी? यानी हमें किसी भी तरह से इस पहेली को हल करना है !
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उल्टी समझ, वही दुःख है और सीधी समझ, वह सुख है । उसे कौन सी समझ मिल रही है, वह देखना है। उल्टी समझ की गाँठ पड़ी तो दुःख, दुःख और दुःख और वह गाँठ सीधी समझ से छूट गई तो सुख, सुख और सुख ! और कोई सुखदुःख है ही नहीं दुनिया में, यानी कि उल्टी समझ से ही गाँठ पड़ जाती है। वर्ना थोड़े-बहुत देह के दंड तो होते हैं ! देह धारण करने के दंड तो रहेंगे न? यदि दाढ़ दुःखे तो क्या कोई दुःख देने आया है? वह तो देह का दंड कहलाता है। किसी रिश्तेदार का हिसाब हो और जब वह चुकाए तो क्या हम उन्हें मना कर सकते हैं? यदि आप कहो कि, 'दादा, अभी हिसाब बंद कर दीजिए।' तो दादा बंद कर देंगे, लेकिन खाते में बाकी रहा न ? तो वसूलीवाले को घर पर चाय-पानी पिलाकर 'अलीसा'ब, अलीसा'ब' करके फिर वापस निकाल दें, फिर भी वह वापस तो आएगा न? इसके बजाय एक बार दे ही दे न यहाँ से! वर्ना फिर वह आए बगैर तो रहेगा नहीं। वह लिए बगैर छोड़ेगा क्या? इसलिए प्रतिकूलता में कहना कि, ' ले जाओ, ले जाओ!' अपना दादाई बैंक है न!
दूषमकाल में जो सब लोग हमें मिलते हैं न, उनमें से अधिकतर दुःख देने के लिए ही होते हैं, थोड़े-बहुत हमें सुख देने के लिए भी होते हैं । पाप के उदय के फल स्वरूप दु:ख देनेवाला मिलता है, लेकिन वह अच्छा है। क्योंकि मुक्त होने का रास्ता जल्दी मिल गया न!
जो मोल ले, उसे दुःख
प्रश्नकर्ता : हम डे टु डे लाइफ में काम करते हैं, सेठगिरी