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दुःख मिटाने के साधन (१५)
दादाश्री : ऐसा है न, इन लोगों को जो दुःख होता है उससे यदि आपको दुःख हो रहा हो तो उस दुःख का आप उपाय करो, लेकिन दुःख का उपाय नहीं हो पाता और ये लोग तो सिर्फ इगोइज़म ही करते हैं कि इनके दुःख देखकर मुझे दुःख हो रहा है। अरे, यदि तुझे दुःख हो रहा है तो तू उसका दुःख मिटा दे न। तेरे सुख के लिए उसका दुःख मिटा दे, उनके सुख के लिए नहीं। अपने सुख के लिए हमें उसका दुःख मिटा देना चाहिए, उस घड़ी जेब में से दस रुपये निकालकर दे देने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : इस तरह कितनों को दस रुपये दूँ?
दादाश्री : इसमें बुद्धि से नहीं गिनना है। आप देने का तय करोगे, तो आप सभी को दे पाओगे । जिसे नहीं देना है, वह किसी को नहीं दे पाएगा। क्योंकि यह सब सत्ता है और सभी कुछ हो सके, ऐसा है। लेकिन 'एक तरफ अंदर दुःख होता है और एक तरफ इस तरह कितनों को मैं पैसे दूँ?' इस तरह ये दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकतीं न!
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कुदरत ने ऐसा कहा है कि आप अपना झूठा इगोइज़म मत करना । जितना आप से हो सके उतना ओब्लाइज करो। सिर्फ ओब्लाइज, अन्य कुछ भी नहीं करना है। बाकी, आप किसी का भी दुःख ले सको, ऐसा है ही नहीं । आप खुद ही दु:खी हो न ! इसलिए ओब्लाइज एवरीबडी, बस इतना ही करो। कोई भूखा आए न तो 'उसके बच्चे को क्या हो रहा होगा? उसकी पत्नी को क्या हो रहा होगा?' ऐसा सब हिसाब नहीं लगाना है। वह भूखा है तो आप कुछ पकौड़ियाँ ले लो और उसे दे दो। बस, आपको और ज़्यादा गहराई में उतरने की ज़रूरत है ही नहीं।
और दुःख तो, ‘ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ, उसके बाद ही चला जाता है। फिर तो दुःख में भी सुख महसूस होता है, अभी तो सुख में भी दुःख महसूस होता है।