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आप्तवाणी-७
भी गलती या इन्सिन्सियारिटी आपको देखने को नहीं मिलेगी। अंदर यदि ऐसा होगा तभी गलती दिखेगी न! हम संसार में रहते ही नहीं। एक क्षण के लिए भी हम संसार में नहीं रहे हैं। संसार में रहना यानी पर-परिणती कहलाती है। हम स्व-परिणाम में रहते हैं, निरंतर मोक्ष में ही रहते हैं, खुली आँखों से ही रहते हैं। पूरा जगत् बंद
आँखों से है। संसार में दुःख कहाँ से लाए? दुःख तो बंद आँखों के कारण हैं। बंद आँखें यानी क्या? पति पत्नी के लिए कहेगा कि, 'यह खराब है।' तब पत्नी कहेगी कि, 'मैं अच्छी हूँ।' इसे कहते हैं खुली आँखोंवाले अंधे। भगवान की भाषा में कौन सी बात सही है? तब भगवान कहते हैं कि, 'दोनों अंधे हैं, इसलिए ऐसा कर रहे हैं।' यदि भगवान की भाषा समझनी हो तो भगवान की भाषा में इस दुनिया में कोई व्यक्ति बिल्कुल भी गुनहगार नहीं है। इस दुनिया में मुझे कोई भी गुनहगार नहीं लगता। जेब काटे, वह भी गुनहगार नहीं है और हार पहनाए वह भी गुनहगार नहीं। गुनहगार दिखते हैं, वही आपका गुनाह है, आपकी दृष्टि का रोग है। जब दृष्टि का वह रोग जाएगा, तब काम होगा। जब कोई गुनहगार दिखे, उसी को मिथ्यात्व कहते हैं। वह दृष्टिरोग है। जब 'ज्ञानीपुरुष' दृष्टिरोग निकाल देते हैं, उसके बाद लोग गुनहगार दिखने बंद हो जाते हैं।
कोई 'कम्प्लीट' गुनहगार हो, हमें काट डालने को तैयार हो, वैसा गुनहगार हो फिर भी हमें उसके प्रति समता रखनी चाहिए। वह कैसे काट सकता है? अपना काटेगा ही नहीं। जो भी काटना होगा वह पुद्गल (शरीर) का काटेगा। इस दुनिया में पुद्गल बाज़ार में नुकसान है। लोग पुद्गल बाज़ार को खुद का व्यापार मान बैठे
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सरलता, वह तो महान पूँजी प्रश्नकर्ता : दुनिया टेढ़ी है लेकिन हम अपने स्वभाव के अनुसार सरलता से बर्ताव करें तो मूर्ख माने जाते हैं। तो सरलता छोड़कर टेढ़े बन जाएँ या मूर्ख माने जाएँ?