________________
पसंद, प्राकृत गुणों की (१४)
२२३
दादाश्री : ऐसा है कि कितने ही जन्मों की कमाई हो, तब जाकर सरलता उत्पन्न होती है। जो टेढ़ा है, हमारी कमाई खो जाए, वह यही चाहता है, तो क्या हम अपनी कमाई खो दें? खुद अपनी कमाई खो देंगे तो हम भी टेढ़े ही हो गए, तो फिर अपने पास रहा क्या? सामान सब खत्म हो गया! और फिर दिवालिया निकलेगा!
प्रश्नकर्ता : तो क्या इसके बजाय मूर्ख बनकर रहना अच्छा
है?
दादाश्री : नहीं, इस जगत् में कोई मूर्ख नहीं है, ऐसा है ही नहीं। जहाँ पर सभी मूर्ख ही हैं, उनमें भले ही वे मूर्ख कहें! अतः आपके मन में ऐसा नहीं रखना है कि 'मुझे मूर्ख मान रहे हैं।' फिर परेशानी ही क्या है? सरलता तो बहुत जन्मों की कमाई से मिलती है, तो अगर उस कमाई को खो दें तो बहुत जोखिम है। और आप तो वकील हो, कभी खोओगे ही नहीं, सोचकर देखो कि इतनी बड़ी पूँजी कहीं खोई जाती होगी? अतः भले ही यह थोड़ा-बहुत मिले, उसमें कोई हर्ज नहीं है। आपको मूर्ख माने, उसमें जो मानता है उनकी जोखिमदारी है। उन्हें दोष लगेगा। जो बोलेगा, उसकी जोखिमदारी है। उससे आपको क्या? आप तो सरलता से बर्ताव कर रहे हो। सरलता, वह तो बहुत ऊँची चीज़ है! टेढ़े व्यक्ति के साथ सरल रहना, वह कोई ऐसी-वैसी चीज़ नहीं है, वह आसान चीज़ नहीं है। अब जो कमाई की है और आपको यदि वह खो देनी हो तो आप इन सब के साथ गुत्थमगुत्था करना।
प्रकृति नहीं बदलेगी, ज्ञान बदलो हर एक व्यक्ति को इतनी हद तक तैयार हो जाना है कि कोई भी जगह उसे बोझ समान न लगे। जगह उससे परेशान हो जाए, लेकिन वह खुद परेशान नहीं हो, उस हद तक तैयार होना