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पसंद, प्राकृत गुणों की (१४)
२१५ होगा! नहीं तो जब तक चेहरा अच्छा दिखे, तब तक उसके प्रति अच्छा भाव रहेगा और यहाँ पर रसौली निकली कि खटकने लगेगा। ऐसा होता है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : होता है, दुर्भाव होता है। दादाश्री : अरे, अभाव होता है, अभाव!
अब, सभी कुछ स्वार्थी हो गया है। छोड़ो न, किसी भी चीज़ की ताक में मत रहना। यदि अपने आप दे जाए तो ठीक है, नहीं तो ऐसे ही चलाना न! भला इन भौतिक चीज़ों की ताक में क्या रहना? 'ताक में रहना,' अर्थात्, स्त्री पर कुदृष्टि रखना
और ताक में रहना, ये दोनों एक समान हैं! बाप बेटे से कुछ पाने की ताक में रहता है और बेटा भी बाप से कुछ पाने की ताक में रहता है! क्या घर में भी स्वार्थ नहीं है?
यानी यह सारा निरा स्वार्थवाला है। सिर्फ यही एक स्वार्थरहित स्थान है, इसीलिए यहाँ पर सभी एकता अनुभव करते हैं। जहाँ कुछ पाने की ताक में नहीं रहते, वहाँ परमात्मा अवश्य होते हैं। मतलबीपने से भगवान दूर रहते हैं! इसलिए यहाँ पर इन सब को आनंद आता है, सभी को कैसी एकता अनुभव होती है! अभी यहाँ पर अगर पाँच कप में चाय लाए हों तो ये सभी पाँच कप में पी लेंगे। और बाहर तो तीस लोगों के लिए पैंतीस कप चाय दें फिर भी, उन्हें कम पड़ जाता है, क्योंकि वहाँ पर पाँच-सात लोग दो-दो कप चाय पीनेवाले निकल आते हैं, इसलिए फिर दूसरों को कम पड़ जाता है।
___ आपने मतलबी लोग देखे हैं क्या? और जहाँ मतलबी हैं, उसका अर्थ ही यह है कि ये लोग हमारा सब्जी-भाजी की तरह उपयोग करना चाहते हैं! उनकी छुरी से सब्जी काटकर खाएँगे! ऐसे मतलबी के साथ रहा ही कैसे जाए? सभी मतलबी हैं न? उस स्वार्थ की लिमिट को या मतलब की लिमिट को हम एक्सेप्ट