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आप्तवाणी-७
बातें करते हैं! जैसे कभी भी अर्थी नहीं निकलनेवाली हो, ऐसी बातें करते हैं न?
स्वार्थ क्यों रखते हो, जहाँ अर्थी निकलनी है वहाँ? जहाँ अर्थी निकलनी हो, वहाँ क्या स्वार्थ रखना चाहिए? 'कभी काम आएँगे।' अरे, जहाँ अर्थी निकालनी हो, उस देश में 'कभी' कहीं होता होगा? कुछ दिनों बाद अर्थी निकलनी है! जिस डॉक्टर से आशा रखी, वह डॉक्टर यहाँ से चला जाता है, फिर भी लोग ऐसा सब देखते हैं न, कि 'डॉक्टर काम के हैं, वकील काम के हैं,' ऐसा नहीं देखते? हाँ, कोई सेठ आ जाएँ, तब भी कहेंगे, 'हाँ, काम के हैं।' तब ‘आईए, आईए सेठ, आईए' करते हैं। 'कभी सौ रुपये माँगेंगे तो मिलेंगे!' लोग मतलब से ही बुलाते रहते हैं न! सारा मतलबी प्रेम, तो ऐसा नहीं होना चाहिए।
शुद्ध-निर्मल प्रेम! इसके अलावा उससे कोई आशा रखनी ही नहीं चाहिए। ये दो हाथोंवाले लोगों से क्या आशा रखनी? कहीं भी पाँच हाथोंवाले लोग देखे हैं? ये तो, जब संडास लगे तब दौड़ते हैं। इनसे भला क्या आशा रखनी! अरे, जुलाब लिया हो न, तो बड़ा कलेक्टर हो वह भी भागदौड़ करेगा! अरे, तू कलेक्टर है, तो ज़रा धीरे से चल न! तब कहेगा कि, 'नहीं, जुलाब हो गया है!' तब तो तुझ से आशा रखने जैसी नहीं है। तू आशा रखने जैसा इंसान है ही नहीं। इनसे क्या आशा रखनी? ये मतलब रखने जैसे हैं? आपको कैसा लगता है?
प्रश्नकर्ता : जैसा दादा कहते हैं, वैसा ही है।
दादाश्री : हाँ, इसलिए साफ कर दो न, अगर अभी भी ज़रा कुछ मैला रह गया हो तो! घर में भी साफ रखना। मतलबी प्रेम मत रखना। 'ये मेरे क्या काम आएँगे' ऐसा नहीं होना चाहिए।
शुद्धात्मा की तरफ दृष्टि, वही प्रेम! फिर पत्नी को यहाँ पर बड़ी सी रसौली निकल आए, तब भी आपको मन में क्लेश नहीं