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आप्तवाणी-७
घात है, कह देते हैं। फिर कहता है, 'लक्ष्मी मिलेगी ऐसा लगता है।' तब जेब में अगर सिर्फ छह रुपये हों, फिर भी वह पाँच रुपये का नोट दे देता है। अरे, छह ही रुपये हैं और पाँच कहाँ दे रहा है? अब उस ज्योतिषी के पैरों में देखने जाएँ तो चप्पल भी नहीं होते। अरे, उसके पैरों में चप्पल नहीं हैं, वह तेरा क्या देखकर देगा? कुछ बड़े सेठ होते हैं, उन सेठों को ज्योतिषी के पास बैठने में शर्म आती है। वे ज्योतिषी को ही अपने बंगले पर बुलाते हैं। अब ज्योतिषी के पैर में न तो हैं चप्पल, न ही उसमें कोई बरकत, उसके मुंह पर कोई नूर नहीं है, वह क्या तेरा देखकर देगा? किसी नूरवाले के पास जा, लेकिन ये लोग तो लालच के मारे हर कहीं हाथ मारते हैं। ज्योतिषी भी बहुत पक्के होते हैं, चेहरे से ही भांप लेते हैं कि ये भाई इतने पानी में हैं। ऐसा भी पहचान जाते हैं कि 'ये भाई कुछ देंगे ही नहीं, इसलिए उनके पास जाते हुए भी डरते हैं यानी मनुष्य को पहचान लेते हैं। ऐसे आँखें देखते हैं, कान देखते हैं, मुँह देखते हैं, सबकुछ देखकर ही फिर शुरूआत करते हैं। ऐसे सामग्री तो ढूँढेंगे न? उन्हें लक्षणों का भान होता है, सब पता होता है। बहुत पक्के होते हैं क्योंकि बहुत लोगों को देखा होता है न! शाम तक पाँचदस ग्राहक मिल ही जाते हैं। लोग बेचारे लालच के मारे क्या नहीं करते? डर के मारे जो कहे, वह करते हैं। अरे, ऊपर कोई बाप भी नहीं है। तू इस तरह ज्योतिषी वगैरह कुछ मत ढूँढ। अकेला जाकर बैठ, अकेले में जाकर! ज्ञान नहीं मिला हो, फिर भी ऐसे किसी के कहे अनुसार कर न! सबसे बड़ा 'बाप' तो भीतर बैठा हुआ है! उस भीतरवाले को 'बाप, बाप' करेगा, तब भी उन्हें पहँच जाएगा, लेकिन लालची लोग तो बाहर धोखा खाते ही रहते हैं न! उसे लूट ही लेते हैं न चारों ओर से!
सबसे बड़ा गुण, अगर लालच नहीं हो तो, वह असल है, दरअसल! और लालच! इनके पास क्या लालच? ये दो हाथवाले लोग! इनके पास क्या ढूँढना है? आज पच्चीस अरब रुपये हों,