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भोगवटा, लक्ष्मी का (१३)
'व्यवस्थित' से बाहर कुछ हो सके, ऐसा है नहीं। फिर भी हमें ‘व्यवस्थित' का अर्थ ऐसा नहीं करना चाहिए कि, 'मैं सो जाता हूँ, सबकुछ हो जाएगा ।' यदि 'व्यवस्थित' कहना हो तो अपना प्रयत्न होना चाहिए । फिर भी प्रयत्न तो 'व्यवस्थित' करवाता है उतने ही करने होते हैं। लेकिन अपनी इच्छा क्या होनी चाहिए? प्रयत्न करने की। फिर 'व्यवस्थित' जितना करवाए उतने ही प्रयत्न में। फिर दस बजे से वसूली के लिए चलने लगे, वह व्यक्ति नहीं मिला तब फिर से बारह बजे गया तो भी नहीं मिला तब फिर घर आकर वापस डेढ़ बजे जाए, ऐसा नहीं करना है । प्रयत्न अर्थात् एक बार जाकर आना, फिर वापस विचार मत करना । यह तो प्रयत्न करते हैं, वह भी कितना कि धक्के खाते रहते हैं प्रयत्न तो सहज प्रयत्न होने चाहिए । सहज प्रयत्न किसे कहते हैं कि हम जिसे ढूँढ रहे हों, वह सामने मिल जाए । यों उसके घर जाए तो वह नहीं मिलता, लेकिन वापस लौटते समय मिल जाता है। मेरा सबकुछ सहज प्रयत्न से हो जाता है। सहज रूप से ही ऐसा हिसाब सेट हो गया है। क्योंकि हमारी दख़ल नहीं है किसी प्रकार की !
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हिसाबवाली रकम, कम-ज्यादा होगी ही नहीं
लक्ष्मी को आगे-पीछे करनेवाला कोई है ही नहीं। कम या ज़्यादा करनेवाला भी कोई नहीं है। यह तो सिर्फ अहंकार ही करता है कि, 'यह सब मैंने कमाया।' लक्ष्मी तो आपका हिसाब है और वह आप जिस तरह से माँगोगे उस तरह से आपको मिलेगा। कोई आप से कहे कि, 'आपका टेन्डर किस प्रकार का है?' तब आप कहो कि, 'साहब, सभी प्रकार से चोरी करके ही कमाना है।' तब कहेंगे कि, 'तेरी रकम तुझे उसी तरह मिलेगी।' आप कहो कि, 'साहब, मुझे एक पैसे की भी चोरी नहीं करनी है ।' तब भी उतनी ही रकम मिलेगी। रकम इज़ द सेम। लेकिन यह तो आपका वहाँ पर टेस्ट होता है