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भोगवटा, लक्ष्मी का (१३)
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में रख दिया हो, उसे कोई डर होगा? हम बहुत कुछ कहते हैं, लेकिन वह उसके हित के लिए होता है। हमारा खुद का हित तो हो चुका है, सर्वस्व हित हो चुका है। वह आपके हित के लिए मुझे वैसा कहना पड़ रहा है। फिर लेनदार सीधा चलेगा न? उसे समझ नहीं है कि इन गालियों का मतलब क्या है? यह 'एकस्ट्रा आइटम' है। इसे देना है, वह शर्त है, तुझे लेना है, वह शर्त है। और यह एकस्ट्रा आइटम कहाँ से आया? इस 'एकस्ट्रा आइटम' के पैसे देने पड़ेंगे! क्योंकि, तू 'एकस्ट्रा' क्यों बोला?
दृष्टि के अनुसार जीवन गुज़र जाता है इन लोगों का तो ऐसा है कि ताश खेलने से पहले ज्ञान रहता है कि यह ताश तो मनोरजंन के लिए खेल रहे हैं। खेलने के बाद हम पूछे कि कैसा है? तो कहेंगे कि, 'मनोरजंन के लिए खेल रहे थे।' लेकिन जब ताश खेलते हैं न, उस समय राग-द्वेष करते हैं, घोटाले करते हैं, सबकुछ करते हैं। ऐसा है इस जीव का स्वभाव। यदि मनोरंजन के लिए खेल रहे हो तो मनोरंजन ही करो न! लेकिन उसमें घोटाला करने की ज़रूरत ही कहाँ है? मनोरंजन करने बैठे तो मनोरंजन ही करना पडेगा न? तो ऐसे घोटाले करके सामनेवाले को 'टोपी' पहना देते हैं। यानी जीव का स्वभाव मूल से ही टेढ़ा है और उसी वजह से मार खाता रहता है। वीतराग जैसे समझदार हो जाएँ न, तो कोई नुकसान नहीं।
उपयोगमय जीवन किस प्रकार? अगर नाखून बाहर रास्ते में फेंक दे तो, उसे खींचने के लिए कितनी चींटियाँ आती हैं! और उन पर किसी का पैर पड़े तो वे सभी चींटियाँ मर जाएँगी। इसमें निमित्त डालनेवाला बनता
है