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आप्तवाणी-७
अतः यह तो बहुत उपयोगपूर्वक, विचारपूर्वक जीवन जीना है कि 'इसका परिणाम क्या आएगा? इसका परिणाम क्या आएगा?' तब कहते हैं, 'वे परिणाम सोचते-सोचते आत्मा वैसा ही हो जाएगा?' तब कहे, 'नहीं, उन परिणामों के विचारों को जो जानता है, वह आत्मा है।' लेकिन परिणाम तो सीधे ही चाहिए न? ___ आप नाखून का टुकड़ा डालकर तो देखना, चींटियों को सुगंध आ ही जाती है। उससे वे तुरंत इकट्ठी हो ही जाएँगी और बाल का टुकड़ा आए तो वहाँ वे इकट्ठी नहीं होतीं। बालों में भी सुगंध होती है और नाखून में भी सुगंध होती है, लेकिन बाल के पास नहीं आतीं।
यह सब बारीकी से जीना चाहिए, सही है या नहीं?