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आप्तवाणी-७
ही देखना है, यही उसका लेवल है। सामनेवाला भाव शुद्ध रखे या न रखे, उस पर से आप समझ सकते हैं। उसका भाव शुद्ध नहीं रहता हो तभी से समझ जाना कि ये पैसे जानेवाले हैं।
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भाव तो साफ होना ही चाहिए। साफ भाव अर्थात् आपके अधिकार से आप क्या करते हो? तब कहेगा कि, 'आज रुपये हों तो आज ही दे दूँ!' वह कहलाता है चोखा भाव। भाव में तो ऐसा ही रहता है कि कब जल्दी से जल्दी चुका दूँ ।
यह तो एकस्ट्रा आइटम
एक लेनदार एक व्यक्ति को परेशान कर रहा था। वह मुझसे कहने आया कि, ‘यह लेनदार मुझे खूब गालियाँ दे रहा था।' मैंने कहा कि, 'वह आए तब मुझे बुलाना ।' फिर वह लेनदार आया, तब उस भाई का बेटा मुझे बुलाने आया । मैं उसके घर गया। मैं बाहर बैठा और वह लेनदार अंदर उस व्यक्ति से कह रहा था, 'आप ऐसी नालायकी करते हो? यह तो बदमाशी है ।' ऐसीवैसी बहुत गालियाँ देने लगा । इसलिए फिर मैंने अंदर जाकर कहा,
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'आप लेनदार हो न?' तब कहे, 'हाँ, मैं लेनदार हूँ।' मैंने कहा, ' और यह देनेवाला है। आप दोनों का एग्रीमेन्ट है। उसने देने का एग्रीमेन्ट किया है और आपने लेने का एग्रीमेन्ट किया है और ये जो गालियाँ आप दे रहे हो वह एकस्ट्रा आइटम है । उसका पेमेन्ट करना पड़ेगा। गालियाँ देने की शर्त एग्रीमेन्ट में नहीं रखी है। हर एक गाली के चालीस रुपये कटेंगे। विनय से बाहर जो कुछ भी बोला तो वह एकस्ट्रा आइटम है, क्योंकि तू एग्रीमेन्ट से बाहर चला गया है।' ऐसा कहने पर वह घनचक्कर भी सीधा हो जाएगा, और फिर से ऐसी गालियाँ नहीं देगा न! हम तो बहुत कुछ सुना देते हैं ताकि वह जवाब नहीं दे पाए और वह सीधा हो जाए।
हमने तो इस देह को सट्टे में रख दिया है। जिसने सट्टे