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पसंद, प्राकृत गुणों की जगत् संबंध की यथार्थता.....
ज्ञान नहीं हो और तांबे का घड़ा खो जाए तो औरतों को क्या होता है? अंदर ऐसा लगता रहता है जैसे आत्मा खो गया हो, रात को नींद में भी ऐसा ही सब लगता है ! और मटकी फूट जाए तो? तो कहेगी, 'भले ही फूट गई! दो आने की ही तो थी!' यानी उसे कुछ भी नहीं होता। इसी तरह यह जगत् जब 'मटकी जैसा' दिखेगा, तब आत्मा की क़ीमत होगी! लेकिन जब तक यह तांबे जैसा लगता है, तब तक परेशानी है। वास्तव में तो यह जगत् उलझन जैसा है ही नहीं। यह तो सिर्फ भ्रांति है, गांठ ही पड़ चुकी है। ऐसे आँख के नीचे हाथ रख दे तब दो दीये दिखते हैं। अरे, हाथ छोड़ दे न चुपचाप ! ज्ञानी के कहने से छोड़। तब कहेगा, 'नहीं साहब, ये दो हैं, उसकी बजाय अंदर कुछ नई ही तरह का हो जाएगा तो !' अरे, एक ही है। तुझे दो लगते हैं, वही तेरी भ्रांति है!
इस दुनिया को यथार्थ रूप से जैसा है वैसा जान लें तो, जीवन जीने लायक है । यथार्थ जान लें तो संसारी चिंता - उपाधि नहीं रहेगी। तब फिर जीने लायक लगेगा !
प्रश्नकर्ता : मनुष्य का जगत् के साथ और परमात्मा के साथ किस प्रकार का संबंध है?
दादाश्री : जगत् के साथ का उसका संबंध भ्रांतिमय संबंध