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आप्तवाणी-७
प्रश्नकर्ता : ज़िम्मेदारी है, इसलिए चिंता होती है न!
दादाश्री : आपके सिर पर क्या ज़िम्मेदारी है ? अगर आप ज़िम्मेदार हो तो बेटा बीमार - वीमार होगा ही नहीं न!
प्रश्नकर्ता : घर में जो बड़े-बूढ़े हैं, उन्हें तो चिंता होगी
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न?
दादाश्री : सारी चिंता नासमझी से होती है । मज़दूर चिंता नहीं करते और सेठ लोग चिंता करते हैं। एक भी मज़दूर चिंता नहीं करता, क्योंकि मज़दूर ऊँची गति में जानेवाले हैं और सेठ नीची गति में जानेवाले हैं। चिंता से नीची गति होती है, इसलिए चिंता नहीं होनी चाहिए । चिंता से कुछ बढ़ जाता है क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं बढ़ता।
दादाश्री : नहीं बढ़ता? तो फिर वह गलत व्यापार कौन करे? यदि चिंता से बढ़ जाता हो, तब वह करना। आपको चिंता का शौक है ?
प्रश्नकर्ता: नहीं। शांति चाहिए ।
दादाश्री : चिंता तो अग्नि कहलाती है। ऐसा होगा और वैसा होगा ! चिंता, वह तो अहंकार है! किसी काल में जब जैन बनने का मौका मिलता है और तब चिंता में रहे तो मनुष्यपन भी चला जाएगा। कितना बड़ा जोखिम है? यदि आपको शांति चाहिए तो हमेशा के लिए चिंता बंद कर दूँ।
जब से चिंता बंद हो, तभी से वीतराग भगवान का मोक्षमार्ग कहलाता है ! वीतराग भगवान के जो दर्शन करे तब से ही चिंता बंद हो जानी चाहिए, लेकिन दर्शन करना भी नहीं आता।
प्रश्नकर्ता : आपके सामने तो हम बालक हैं।
दादाश्री : हाँ, इसीलिए तो कह रहा हूँ कि दर्शन करना