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आप्तवाणी-७
...खुदा की ऐसी इच्छा प्रश्नकर्ता : कोई बालक जन्म लेते ही तुरंत मर जाता है, तो क्या उसका सिर्फ उतना ही लेना-देना था? ।
दादाश्री : जिसका माँ-बाप के साथ राग-द्वेष का जितना हिसाब होता है उतना पूरा हो जाए, तब वह माँ-बाप को रुलाकर चला जाता है, खूब रुलाता है, सिर भी फुड़वाता है, फिर डॉक्टर के पास जाकर दवाई के पैसे खर्च करवाता है। सबकुछ करवाकर बच्चा चला जाता है!
यह अपने बड़ौदा में शुक्करवारी है, यह आप जानते हो न? तो इस शुक्करवारी में से लोग भैंसा लाते हैं, वह हर प्रकार से जाँच-पड़ताल करके उधर से भैंस खरीदकर लाता है। सभी दलालों से पूछता है कि, 'कैसी लग रही है?' तब सभी दलाल कहते हैं कि, 'बहुत अच्छी हैं।' वह भैंस को घर ले जाकर बाँध देता है। तीन दिनों बाद वह मर जाती है। अरे, यह क्या था? यह तो मालिक को पैसे दिलवाकर गई, नहीं तो उसी के वहाँ नहीं मर जाती? ऐसा होता है न? ये सब हिसाब चुकाने हैं। बच्चा जन्म लेकर तुरंत ही मर जाता है, वह सब को रुलाकर जाता है। सभी को फिर ऐसा होता है कि 'इसके बजाय जन्म न लेता तो अच्छा था।'
और जो कुछ पूछना हो वह पूछो। अल्लाह के पास पहुँचने में यदि कोई अड़चन आए, तो वह हमसे पूछो। हम आपकी वह रुकावट दूर कर देंगे।
प्रश्नकर्ता : मेरे बेटे की दुर्घटना में मृत्यु हो गई, तो उस दुर्घटना का कारण क्या था?
दादाश्री : इस जगत् में जो कुछ आँखों से देखा जाता है, कान से सुना जाता है, वह सब 'रिलेटिव करेक्ट' है, बिल्कुल सच नहीं है वह बात! यह देह भी अपनी नहीं है तो बेटा अपना