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[९] निष्क्लुशितता, ही समाधि है
समझ शमन करे क्लेश परिणाम लोगों के घर पर क्लेश नहीं हों, जीवन क्लेशित नहीं रहे, ऐसा ही धर्म बताना है। अभी तो यह धर्म अपसेट हो गया है, इसलिए ये लोग क्लेशित जीवन जी रहे हैं। नहीं तो क्या ये जैन
और वैष्णव गुनहगार हैं? ऐसा नहीं है। फिर भी क्यों इतनी सारी चिंताएँ हैं? क्योंकि पूरा जीवन ही क्लेशित है। पूरा धर्म ही ऐसा था, वह अभी इस तरह उलट गया है। इसलिए जो ऐसे उलट चुका है, उसे फिर से वापस यों उलट दूँगा। बहुत ही आसानी से जीवन क्लेशरहित हो जाए, ऐसा है! और इन लोगों को बगैर मेहनत का धर्म दूँगा। इनके मुँह पर तो अरंडी का तेल चुपड़ा हुआ है, इनसे क्या मेहनत करवाएँ? बाहर लोगों के मुँह पर अरंडी का तेल नहीं दिखता? मुँह पर अरंडी का तेल चुपड़कर घूमते हैं? उसका क्या कारण है? इन लोगों से मेहनत करवाने जैसा नहीं है, तपत्याग करवाने जैसा नहीं है, दुःखी ही हैं बेचारे। फिर कहेंगे, 'फलाना खाना छोड़ दो।' अरे, सिर्फ वही एक चीज़ तो भाती है बेचारे को, उसे क्यों छुड़वा रहा है? उसे त्याग करवाने जैसा तो है ही नहीं। उसे सुख ही नहीं है किसी प्रकार का! करुणा आए ऐसा हो गया है! हमें जब ऐसा सब दिखता है तब हमें करुणा आती है, कि इनमें से, इन दुःखों में से इन लोगों को मुक्ति मिले।
क्लेश हुआ, लेकिन निकालें किस तरह? इस संसार में लोग, हिन्दुस्तान की स्त्रियाँ और पुरुष दिन