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आप्तवाणी-७
तो यह जो गुप्त रूप से देते हैं उसकी बहुत क़ीमत है । फिर भले ही एक रुपया दिया हो। और ये तख्ती लगवाते हैं, वह तो 'बैलेन्सशीट' पूरी हो गई । सौ का नोट आपने मुझे दिया और मैंने आपको छुट्टे दिए, उसमें मुझे लेना भी नहीं रहा और आपको देना भी नहीं रहा! इसी तरह ये लोग धर्मदान करके खुद के नाम की तख्ती लगवाते हैं, उसे फिर कुछ लेन-देन रहा ही नहीं न? क्योंकि जो धर्मदान दिया था, उसका मुआवज़ा उसने तख्ती लगवाकर वापस ले लिया । और जिसने एक ही रुपया गुप्त रूप से दिया, तो उसने देकर वापस लिया नहीं है, इसलिए उसका बैलेन्स बाकी रहा ।
हम मंदिरों में और सभी जगह घूमे हैं, वहाँ कुछ जगह पर दीवारें तख्तियों, तख्तियों और सिर्फ तख्तियों से भरी हुई होती हैं। तख्तियों की वैल्यूएशन कितनी ? तख्ती अर्थात् कीर्ति के लिए ! और जहाँ कीर्ति हेतु ढेर सारी तख्तियाँ हों, वहाँ कोई इंसान देखता भी नहीं है कि इसमें क्या पढ़ना ! पूरे मंदिर में एक ही तख्ती हो तो कोई पढ़ेगा, लेकिन ये तो ढेर सारी, पूरी की पूरी दीवारें तख्तीवाली बना दी हों तो क्या होगा? फिर भी लोग कहते हैं कि मेरे नाम की तख्ती लगवाना ! लोगों को तख्तियाँ ही पसंद हैं न !
अंत में तो धर्म का ही साथ
ज़रूरत के समय तो सिर्फ धर्म ही आपकी मदद करने के लिए हाज़िर रहेगा, इसलिए धर्म के रास्ते पर लक्ष्मी जी को जाने देना । सिर्फ एक सुषमकाल में लक्ष्मी जी पर मोह करने योग्य था । वे लक्ष्मी जी तो आई नहीं ! अभी इन सेठों को हार्टफेल और ब्लडप्रेशर कौन करवाता है? इस काल की लक्ष्मी ही करवाती है।
प्रश्नकर्ता : यदि जीवन में आर्थिक परिस्थिति कमज़ोर हो तब क्या करें?
दादाश्री : एक साल बरसात नहीं हो तो किसान क्या कहते