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आप्तवाणी-७
है। वह तो
और नुकसान, 48 के अधीन
और उपाधि पसंद तो है नहीं। यह मनुष्य देह उपाधि से मुक्त होने के लिए है, सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं। पैसा कैसे कमाते होंगे? मेहनत से कमाते होंगे या बुद्धि से?
प्रश्नकर्ता : दोनों से।
दादाश्री : यदि पैसे मेहनत से कमाते, तो इन मज़दूरों के पास बहुत सारे पैसे होते। क्योंकि ये मज़दूर ही सबसे अधिक मेहनत करते हैं न! और पैसे बुद्धि से कमा रहे होते, तो ये सब पंडित हैं ही न! तो उनकी तो चप्पल भी आधी घिसी हुई होती है। इसलिए पैसे कमाने, वह बुद्धि का खेल नहीं है, न ही मेहनत का फल है। वह तो आपने पहले पुण्य किए हुए हैं, उसके फलस्वरूप आपको मिलते हैं और नुकसान, वह पाप किया है उसके फलस्वरूप है। लक्ष्मी पुण्य के और पाप के अधीन है। अतः यदि लक्ष्मी चाहिए तो हमें पुण्य-पाप का ध्यान रखना चाहिए।
लक्ष्मी के प्रति प्रीति! तो भगवान के प्रति?
पूरे जगत् ने लक्ष्मी को ही मुख्य माना है न? हर एक काम में लक्ष्मी ही मुख्य है। इसलिए लक्ष्मी पर अधिक प्रीति है। जब तक लक्ष्मी पर प्रीति अधिक रहेगी, तब तक भगवान पर प्रीति नहीं रह सकेगी। भगवान पर प्रीति होने के बाद लक्ष्मी पर प्रीति खत्म हो जाती है। दोनों में से एक पर प्रीति रहेगी। या तो लक्ष्मी के साथ या फिर नारायण के साथ। आपको ठीक लगे वहाँ पर रहो। लक्ष्मी दुःख देगी। जो सुख देती है, वह दु:ख भी देगी। जबकि नारायण सुख नहीं देते और दुःख भी नहीं देते, निरंतर आनंद में रखते हैं, मुक्तभाव में रखते हैं!
ज्ञानीपुरुष के पास एक बार दिल से हँसे, तभी से भीतर भगवान के साथ तार जोइन्ट हो जाता है। क्योंकि आपके भीतर भगवान बैठे हुए हैं, हमारे भीतर भी भगवान बैठे हुए हैं। लेकिन