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आप्तवाणी-७
है, उसी तरह इनका लपटुं पड़ जाता है। ये पत्नी-पति के संबंध में भी कुछ लोगों का लपटुं पड़ जाता है ने? फिर जब वह पत्नी से दब जाए, तो फिर हमें क्या कहना पड़ता है कि, 'कॉर्क को जरा वेल्डिंग करवाकर मोटा कर न?' ताकि फिर वह अपने आप निकल न जाए!
...ऐसे शक्तियाँ व्यर्थ गईं प्रश्नकर्ता : लेकिन लोगों को तो जब तक पत्नी के साथ अबोला (रूठकर बातचीत करना बंद कर देना) नहीं हो, तब तक ज़िंदगी में मज़ा नहीं आता।
दादाश्री : हाँ! वो अबोला होता है फिर उसे मज़ा आता है! क्योंकि जैसे यह कुत्ता है, जब वह हड्डी चूसता है, अब देखने जाएँ तो हड्डी को हम धोएँ तो ज़रा सा भी खून नहीं निकलेगा, लेकिन वह कुत्ता उसे जैसे-जैसे दबाता जाता है, वैसे
वैसे उसमें से खून निकलता रहता है। अब खून खुद के जबड़े में से निकलता है, लेकिन वह समझता है कि हड्डी में से निकला। इस तरह संसार चलता रहता है!
अंधा बुने और बछड़ा चबाए, ऐसा संसार है। अंधा ऐसे डोरी बुनता रहता है, आगे-आगे बुनता रहता है और पीछे डोरी पड़ी होती है उसे बछड़ा चबाता जाता है। उसी तरह अज्ञानी की सभी क्रियाएँ बेकार जाती हैं और फिर मरने के बाद अगला भव बिगाड़े तो मनुष्य जन्म भी नहीं मिलता! अंधा समझता है कि ओहोहो! पचास फुट की डोरी बन गई है लेकिन लेने जाए तब कहेगा, 'ये क्या हो गया?' अरे, वह बछड़ा सब चबा गया!
इस तरह बचपन से लोग पैसा कमाते रहते हैं, लेकिन बैंक में देखने जाएँ तो कहेंगे, 'दो हज़ार ही पड़े है।' और पूरा दिन हाय-हाय, हाय-हाय, पूरा दिन कलह, क्लेश और झगड़े! अब अनंत शक्तियाँ हैं। जैसा आप भीतर सोचते हो वैसा ही बाहर हो जाए